Wednesday, May 9, 2012
पप्पियों की पीढ़ियाँ
पप्पियों की पीढ़ियाँ
संजय चतुर्वेदी
वे आए
अपने इतिहास को अपनी ज़मीन पर छोड़कर
कहीं कोई कमरा किराए पर ले
धीरे-धीरे उन्होंने जीत लिए शहर
उनके बच्चों ने
पेट में ही सीख लिया शहर जीतना
और तोड़ डालीं
मिली थीं अग़र कुछ मूर्तियाँ उन्हें गर्भ में।
1 comment:
नीरज गोस्वामी
said...
बहुत खूब कहा है..वाह
नीरज
May 9, 2012 at 4:33 PM
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1 comment:
बहुत खूब कहा है..वाह
नीरज
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