बशीर बद्र की बेहद खूबसूरत गज़ल हुसैन बंधुओं के स्वर में -
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी
नज़र को खबर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उस के बाद
सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफत
भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ
में असर न हो
मेरे बाजुओं में थकी थकी अभी महव-ए-खाब
है चांदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का
गुजर न हो
कभी दिन की धुप में घूम के, कभी शब को
फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी खत्म
अपना सफर न हो
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