Wednesday, May 9, 2012

मरता हो तो जीना आ जाए!



शंकर-शंभू क़व्वाली की दुनिया के ऐसे अज़ीम फ़नक़ार थे जिनकी दमदार गायकी का जलवा आज भी दुनिया मानती है. हमारे देश की गंगा-जमनी तहज़ीब के ये बेजोड़ नुमांइदें अजमेर शरीफ़ होने वाले सालाना उर्स के नियमित प्रस्तोता थे. फ़िल्मों में भी शंकर-शंभू ने ख़ूब गाया. शंकरजी की आवाज़ में ग़ज़ब की हरक़ते थीं. वे षड्ज से अनायास तार सप्तक पर सुर ले जाते और सुनने वालों को चौंका देते. पूरे देश में तक़रीबन हर क़व्वाली पसंद शहर में इस जोड़ी ने अपनी क़व्वालियों का जादू जगाया. बहुत कम साज़ों और चंद लोगों का कोरस लेकर शंकर-शंभू ने शब्द प्रधान गायिकी को बहुत शानदार तरीक़े से निभाया. आकाशवाणी इन्दौर पर इन कलाकारों ने क़व्वाली के अंदाज़ में ही सुर-तुलसे=मीरा और कबीर के पद भी गाये थे. कहते हैं मुग़ले आज़म के मुहूर्त पर भी शंकर-शंभू की क़व्वाली का आयोजन किया गया था. अहमदाबाद से अजमेर जाते हुए एक कार दुर्घटना में इस जोड़ी में किसी एक या दोनो कलाकारों का इंतेक़ाल हो गया था.(कोई शंकर-शंभू रसिक बताएगा तो बड़ी नवाज़िश) बाद में इनके बेटे रामशंकर ने कुछ एलबम्स को लेकर कुछ नाक़ायाब कोशिशें की लेकिन तब तक अल्ताफ राजा जैसे बेसुरे गुलूकारों की दुकान चल चुकी थी...आइये मुलाहिज़ा फरमाइये शंकर-शंभू का गाया ये नातिया क़लाम.

3 comments:

Arvind Mishra said...

आज की सुबह जीवंत हो उठी

स्वप्नदर्शी said...

shukriya!

पारुल "पुखराज" said...

संजय भाई
कन्नौज में मेरे मामाजी के मित्र थे शंकर-शंभू । उन्ही से सुना था कि कार दुर्घटना में शंकर भाई नही रहे …