दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं
क्यों गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाये दिल?
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र नहीं हूँ मैं
या रब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये
लौह-ए-जहां पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर नहीं हूँ मैं
हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं
(दायम - हमेशा, गर्दिश-ए-मुदाम -
हमेशा की गर्दिश, लौह-ए-जहां - संसार का कागज़, हर्फ़-ए-मुक़र्रर - बार बार लिखी गयी इबारत, उक़ूबत
- तकलीफ)
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