(जारी)
महान गायक उस्ताद अमीर खाँ - ४
कहना न होगा कि अब तक वे एक ऐसे शिखर पर आ गये थे कि मिर्जापुर की महफिल का मान-अपमान बहुत पीछे छूट गया था. अब वह बहुत दूरस्थ और धूमिल था. उन्हें खासतौर ‘मेरुखण्ड‘ की गायकी ने जिस रचनात्मक-स्थापत्य पर खड़ा कर दिया, वहाँ उनकी ऊँचाइयाँ देख कर ‘किराना‘ घराना से लेकर भिण्डी बाजार तक के लोग उनको अपने दावों के भीतर रखने लगे,. लेकिन वे अपनी कठिन तपस्या के बल पर, अब अपने आप में एक ‘घराना’ बनने के करीब थे. देश भर के संगीत-संस्थानों के आयोजनों और आकाशवाणियों के केन्द्रों परचारों-ओर अब वही पाटदार और ठाठदार आवाज गूँजने लगी. यह ‘इतिहास में हुए अपमान के विरुद्ध’ शनैः शनैः अर्जित प्रसिद्धि का पठार था. मगर, उस्ताद अमीर खाँ एक गहरी आध्यात्मिक उदारता और दार्शनिकता के साथ अपनी तपस्या में लगे रहे.
उन्हें फिल्मों में भी गाने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन वहाँ भी उन्होंने शास्त्रीयता की रक्षा के साथ अपना अवदान दिया. लोगों के लिए वहाँ भी यह विस्मय था, कि कहाँ कैसे कोई श्रुति आयी है ? षड्ज लगा है तो कौन सा लगा है ? दूसरी श्रुति या तीसरी श्रुति का ? गान्धार लगा तो कौन सा लगा ? और इसमें मूर्च्छना से जो जरब लगी, वो ‘जरब‘ कैसी लगी ? ‘जरब‘ जहाँ तोल कर लगाई, तो लगता है, वह सन्तुलित नहीं अतुलित है ? यह गणित को जानकर गणित से बाहर हो जाने का सामर्थ्य है. मुझे अंग्रेजी के प्रोफेसर और लेखक अजातशत्रु के दिए गए एक साक्षात्कार की याद आ रही है. उन्होंने एक दफा उनके पेडर रोड के उनके फ्लैट में सामने की गैलरी में देखा था. रात गये, जब बम्बई ऊँघ रही थी. वे उस गैलरी में चहल-कदमी करते हुए ऐसे लगे थे, जैसे कोई बैचेन सिंह है, कटघरे में. जो कटघरे के भीतर रह कर भी कटघरे से बाहर फलाँग गया है. वह खामोश है, लेकिन उसकी गर्जना मेरे कानों के भीतर गूँज रही है.‘ और सचमुच ही एकदिन उनकी देह फलाँग गयी. तेज गति से चलते वाहन के बाहर. और वे फलाँग गये, उस दुनिया से, जिसमें रहकर वे अपने स्वर और तानों में सारा प्राण फूँक रहे थे. वह चौदह जनवरी उन्नीस सौ चौहत्तर की दुर्भाग्यशाली सुबह थी, जिसमें देशभर के समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ की खबर थी कि कलकत्ता में हुई एक कार दुर्घटना ने शास्त्रीय संगीत के एक महान गायक को हमसे छीन लिया है. उस्ताद अमीर खाँ साहब का देहावसान हो गया है. आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे अब एक गायक नहीं, एक पूरे घराने की तरह मौजूद हैं, जिसमें उनके कई-कई शिष्य हैं, जो गा-गा कर अपने गुरु का ऋण उतार रहे हैं.
(समाप्त)
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