Monday, July 9, 2012

तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया है घर छोड़कर फ़ुटपाथों को छानना



विषाद का महाकाव्य

-निज़ार क़ब्बानी

तुम्हारे प्यार ने मुझे शोक करना सिखाया
और मुझे सदियों से एक स्त्री की
ज़रूरत थी जो मुझे शोक करना सिखाती
एक स्त्री की
जिसकी बांहों में मैं रो पाता
किसी गौरैया की मानिन्द
एक स्त्री की जो टूटे स्फटिक की किरचों की मानिन्द
मेरे टुकड़ों को समेटती

तुम्हारे प्यार ने, मेरे प्यार, मुझे बहुत बुरी आदतें सिखाईं हैं
इसने मुझे एक रात में हज़ारों दफ़ा
अपने कॉफ़ी के प्यालों को पढ़ना सिखाया है
और कीमियागरी के प्रयोग करना
और ज्योतिषियों के पास जाना

तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया है घर छोड़कर
फ़ुटपाथों को छानना
और तुम्हारा चेहरा खोजना बारिश की बूंदों में
और कारों की रोशनियों में
और ग़ौर करना
अजनबियों के कपड़ों में तुम्हारे कपड़ों पर
और तुम्हारी छवि को खोजना
यहां तक कि ... यहां तक कि ...
यहां तक कि विज्ञापनों के पोस्टरों में
तुम्हारे प्यार ने मुझे फ़िज़ूल भटकना सिखाया है
घन्टों एक जिप्सी के केशों की खोज में
जिन पर सारी जिप्सी स्त्रियां रश्क करती हों
एक चेहरे, एक आवाज़ की खोज में
जो कि सारे चेहरे और सारी आवाज़ें हो ...

मेरी प्यारी, तुम्हारे प्यार ने मुझे
दाख़िल कर दिया है विषाद के नगरों में
और तुम से पहले
मैं कभी नहीं गया था विषाद के नगरों में
मैं नहीं जानता था ...
कि आंसू ही होते हैं एक शख़्स
कि बिना विषाद का शख़्स
एक शख़्स की परछाईं भर होता है.

तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया
एक लड़के की तरह व्यवहार करना
खड़िया से लिखना तुम्हारा नाम
दीवारों पर
मछुवारों की नावों की पालों पर
गिरजाघर की घन्टियों पर, सलीबों पर
तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया
किस तरह समय का नक्शा बदल देता है प्यार
तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया कि जब मैं प्यार करता हूं
धरती बन्द कर देती है घूमना
तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाईं बातें
जिन का कभी कोई मानी नहीं था.
सो मैंने बच्चों की परीकथाएं पढ़ीं
मैं ने जिन्नात के महलों में प्रवेश किया
मैंने सपना देखा कि वह मुझ से ब्याह करेगी
सुल्तान की बेटी
वे आंखें
झील के पानी से ज़्याफ़ा साफ़
वे होंठ
अनार के फूलों से ज़्यादा मनभावन
अर मैंने सपना देखा कि मैं एक राजकुमार बनकर उसका अपहरण कर लूंगा
और मैंने सपना देखा कि मैं
उसे दूंगा मोतियों और मूंगों का हार
तुम्हारे प्यार ने, मेरी प्यारी मुझे सिखाया
क्या होता है पागलपन
इसने मुझे सिखाया ... किस तरह बीत सकता है जीवन
सुल्तान की बेटी के आए बिना भी

तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया
किस तरह मोहब्बत की जाए सारी चीज़ों से
सर्दियों के एक नंगे पेड़ से
सूखी पीली पत्तियों से
बारिश से, तूफ़ान से
छोटे से कहवाघर से जहां हम गए थे
शाम से ... हमारी काली कॉफ़ी

तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया
शरण लेना
बिना नाम के होटलों में
बिना नाम के गिरजाघरों में
बिना नाम के कहवाघरों में शरण लेना

तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया
किस तरह रात में फूलती है अजनबियों की उदासी
इसने मुझे सिखाया ... बेरूत को कैसे देखा जाए
एक स्त्री की तरह ... प्रलोभन के तानाशाह को
एक स्त्री की तरह जो हर शाम धारण करती है
अपनी सबसे शानदार पोशाक
और मछुआरे के लिए और राजकुमारों के लिए
अपनी छातियों पर लगाती है ख़ुशबू
तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया कैसे रोया जाए बग़ैर रोए
इसने मुझे सिखाया किस तरह सोती है उदासी
रूच और हमरा की सड़कों पर
पैर काट दिए गए बच्चे की तरह.

तुम्हारे प्यार ने मुझे शोक करना सिखाया
और मुझे सदियों से एक स्त्री की
ज़रूरत थी जो मुझे शोक करना सिखाती
एक स्त्री की
जिसकी बांहों में मैं रो पाता
किसी गौरैया की मानिन्द
एक स्त्री की जो टूटे स्फटिक की किरचों की मानिन्द
मेरे टुकड़ों को समेटती

1 comment:

Arvind Mishra said...

ये लम्बी कवितायें भावबोध और अर्थवत्ता से कितनी ही लबरेज क्यों न हों पार्ट हमें यह भी याद दिला देती हैं -
ब्रेविटी इज द सोल आफ विट!