Saturday, September 22, 2012

सुबह दे दो


इब्बार रब्बी की एक छोटी सी कविता से दिन का आग़ाज़ कीजिये-

सुबह दे दो

मेरी सुबह दे दो
सुबह से कम कुछ भी नहीं
सूरज से अलग कुछ भी नहीं
लाल गर्म सूरज
जोंक और मकोड़ों को जलाता हुआ
सुबह से कम कुछ भी नहीं।

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