Tuesday, September 25, 2012

न दे जो बोसा तो मुंह से कहीं जवाब दो दे


उस्ताद बरकत अली खां की गाई मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल पेश है –

ठुमरी, गीत और ग़ज़ल के क्षेत्र में उस्ताद एक प्रतिष्ठित नाम थे. इसके अलावा पूरबी और पंजाबी रंग की गायकी पर उनकी पकड़ लाजवाब थी. उस्ताद बड़े गुलाम अली खां के इन अनुज उस्ताद बरकत अली खां की आवाज़ में कल आपने मीर तकी मीर की एक ग़ज़ल सूनी थी.


 

वो आके ख्व़ाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
दे के मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख्व़ाब दे

करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तेरी तरह कोई तेग-ए-निगाह को आब तो दे

दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हमको
न दे जो बोसा तो मुंह से कहीं जवाब दो दे

पिला दे ओक से साकी जो हमसे नफरत है
प्याला गर नहीं देता न दे शराब तो दे

‘असद’ खुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए
कहा जो उसने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे



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