Wednesday, September 26, 2012

कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं

अख़्तर-उल-ईमान की एक और नज़्म पेश है - 



इत्तेफ़ाक़

दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो
शदीद कर्ब की घड़ियाँ गुज़ार चुकने पर
कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं
किसी एक ऐसी जगह से हो यूँ ही मेरा गुज़र
जहाँ हुजूम-ए-गुरेज़ाँ में तुम नज़र आ जाओ
और एक-एक को हैरत से देखता रहे

(कर्ब- गम, हुजूम-ए-गुरेज़ाँ - भागती हुई भीड़) 

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चित्र- चीनी कलाकार वांग जियान की कृति 'ओरिजिनल डिज़ायर'

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