कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी द्वारा
किए गए ये अनुवाद गिरिराज किराडू और राहुल सोनी के सम्पादन में निकलने वाली द्विभाषी
पत्रिका प्रतिलिपि के नवम्बर २०११ के अंक में छपी थीं. अगले कुछ अनुवादों को वहीं
से साभार लिया गया है –
सत्यं जना वच्मि न
पक्षपाताल्लोकेषु सप्तस्वपि तथ्यमेतत्।
नान्यन्मनोहारि नितम्बिनीभ्यो दुःखैकहेतुर्न च कश्चिदन्यः ॥
नान्यन्मनोहारि नितम्बिनीभ्यो दुःखैकहेतुर्न च कश्चिदन्यः ॥
मनुष्यो !
मैं पक्षपात से नहीं
वरन् सच कहता हूँ
कि सातों लोकों में
यही यथार्थ है
कि सुन्दर और पृथुल नितम्बवाली
स्त्रियों से
सुन्दर
कोई दूसरा नहीं
न कोई और
उनसे बढ़कर
दुख का
एकमात्र कारण है
मैं पक्षपात से नहीं
वरन् सच कहता हूँ
कि सातों लोकों में
यही यथार्थ है
कि सुन्दर और पृथुल नितम्बवाली
स्त्रियों से
सुन्दर
कोई दूसरा नहीं
न कोई और
उनसे बढ़कर
दुख का
एकमात्र कारण है
1 comment:
लोग कहते हैं भारत में सच नहीं बोलते लोग । दरअसल
इतना सच पहले ही बोला जा चुका है कि उसमें एडीशन की गुंजाइश कहाँ । कौन काटेगा इनकी बात सच कहा है ।
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