वैराग्यशतक का यह पद सं. १०६ धीरेश सैनी की फेसबुक दीवार पर
जनाब-ऐ-अव्वल असद जैदी के हवाले से पोस्ट किया गया था. पोस्ट पर आई एक टिप्पणी में
कैफ़ी आजमी साहब की “वक्त ने
किया क्या हसीं सितम ...” को उद्धृत किया गया. असद जी ने
भर्तृहरि और कैफ़ी साहब के दरम्यान किसी हॉटलाइन के मौजूद होने का ज़िक्र किया और
हिन्दी तर्जुमा भी उपलब्ध कराया -
यूयं वयं वयं यूयमित्यासीन्मतिरावयोः ।
किं जात मधुना मित्र येन यूयं यूयं वयं वयम् ।।
किं जात मधुना मित्र येन यूयं यूयं वयं वयम् ।।
तुम हम थे और हम तुम थे –
यह हमारी और तुम्हारी बुद्धि थी।
आज क्या हो गया कि हे मित्र!
तुम तुम हो और हम हम हैं।
यह हमारी और तुम्हारी बुद्धि थी।
आज क्या हो गया कि हे मित्र!
तुम तुम हो और हम हम हैं।
3 comments:
ऐसा ही एक और उदाहरण मेरे जेहन में आ रहा है। अंग्रेजी कवि पी0बी0 शेली की कविता की एक पंक्ति 'Our sweetest songs are those, that tell of saddest thought' को तलत महमूद द्वारा गाये गये हिन्दी फिल्म के एक गीत में इस तरह डाला गया है- है सबसे मधुर वो गीत जिसे, हम दर्द के सुर में गाते हैं।
चमत्कार । वरना हम तो समझे थे घर का जोगी जोगणा आन गाँव का सिद्द । ऐसा नहीं कि विश्व कविता की महत्ता कम है लेकिन संस्कृत -- उसे अभी छू न पाया पच्छम । चमत्कार इसलिए कि हम तो हमेशा से मुरीद इनके थे , देखने को आए कि क्या रविशंकर को कोई ओबिच्यूरि छपी यहाँ या नहीं लेकिन हाय ये वाद का विवाद । उन्हें अमरीका जैसे लंठ ने आँखों धरा तो आप रूस गए ।
न केवल कैफ़ी बल्कि जावेद अख़्तर की एक कविता जिसमें वो कहते हैं कि वक्त नहीं हम बीत रहे हैं उसमें भी भर्तृहरि की स्पष्ट गूँज है और यहाँ साइडबार में लगी तमाम बातें भी शानदार हैं ।
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