Friday, December 21, 2012

मां ने देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे मेरे लिये


वरिष्ठ कवि चन्द्रकांत देवताले को साहित्य अकादमी पुरूस्कार से सम्मानित होने पर कबाड़खाने की बधाई.

मां पर नहीं लिख सकता कविता

मां के लिए संभव नहीं होगी मुझसे कविता
अमर चिऊंटियों का एक दस्ता
मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है
मां वहां हर रोज़ चुटकी - दो- चुटकी आटा डाल जाती है

मैं जब भी सोचना शुरू करता हूं
यह किस तरह होता होगा
घट्टी पीसने की आवाज़
मुझे घेरने बैठ जाती है
और मैं बैठे-बैठे दूसरी दुनिया में ऊंघने लगता हूं

जब भी कोई मां छिलके उतारकर
चने, मूंगफली या मटर के दाने
नन्हीं हथेलियों पर रख देती है
तब मेरे हाथ अपनी जगह पर
थरथराने लगते हैं

मां ने हर चीज़ के छिलके उतारे मेरे लिये
देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे
और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया

मैंने धरती पर कविता लिखी है
चन्द्रमा को गिटार में बदला है
समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया
सूरज पर कभी भी कविता लिख दूंगा

मां पर नहीं लिख सकता कविता

(कवि का फोटो – कुमार अम्बुज की फेसबुक वॉल से साभार)

2 comments:

संतोष त्रिवेदी said...

चंद्रकांत देवताले जी को बधाई !
.
.उनकी कविताएँ बहुत प्रभावित करती हैं। 'यमराज की दिशा ' को तो हम हर वर्ष स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ाते हैं ।

Amrita Tanmay said...

कवि चन्द्रकांत देवताले जी को हार्दिक शुभकामनाएं..