Friday, December 21, 2012

तुम भी धीरे से कहना सीखो --दिस इज़ अनएक्सेप्टेबल. और फिर भूल जाओ


यह पोस्ट राजेश जोशी ने अहमदाबाद से बी बी सी के लिए लिखी थी. उन्हीं के इसरार पर इसे यहाँ लगा रहा हूँ.

प्रिय शरीफ़ा बीबी,  

तुमसे हुई उस छोटी सी मुलाक़ात के बाद अब भी मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ.

 तुम इतनी ज़िद्दी क्यों होजो कुछ हुआ उसे भूल जाओ ना !

दस साल गुज़र गए हैं. दुनिया कहाँ से कहाँ चली गई. आठ साल के बच्चे अब अठारह साल के नौजवान हो चले हैं.

 देखों तुम्हारे शहर की सड़कें कितनी चौड़ी हो गई हैं. कितनी तो ऊँची ऊँची कॉलोनियाँ बन गई हैं. कारेंकितनी तो चमचमाती कारें हो गई हैं. और शॉपिंग मॉल्स?

अब तो लगातार तीसरी बार तुम्हारे रहनुमा तुम्हें विकास यानी तरक़्क़ी की राह पर ले जाने को तैयार हैं.

पर तुम हो कि अब भी हर आने जाने वाले को वही पुरानी कहानी सुनाती हो.

जैसे कि मुझे सुनाई तुमने अपनी रामकहानी कि कैसे उस सुबह तुम चाय पी के बैठी थीं और अचानक तुमने देखा कि टुल्ले के टुल्ले आ रहे थे. हथियारों से लैस लोगों की भीड़.

कैसे तुम और तुम्हारा आदमी पुलिस वालों के पास मदद माँगने पहुँचे और फिर पुलिस वालों ने तुम्हें ये कह कर भगा दिया कि आज तुम्हारा मरने का दिन हैवापिस घर जाओ.

अब ऐसी भारी भीड़ के सामने पुलिस वाले क्या कहते भलाबोर हो गया मैं तुम्हारी दास्तान सुनकर.

और अब तुम ये याद करके करोगी भी क्या कि जब तुम और तुम्हारे बच्चे जान बचाने को इधर-उधर भाग रहे थेतुम्हारा सबसे बड़ा बेटा पीछे छूट गया?

ये याद करके भी क्या करोगी कि उसको भीड़ ने पाइपलाठियों और तलवारों से मारा.

और ये याद करके भी क्या करोगी कि जब उसका कत्ल किया जा रहा था तो तुम जाली के पीछे से छिपकर देख रही थी और तुम्हारी आँखों के सामने ही भीड़ ने उसपर मिट्टी का तेल डालकर उसे जला डाला?

देखो सब आगे बढ़ गए हैं. तुम कब तक उन यादों में उलझी रहोगी. तुम लोगों की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि तुम भूल नहीं सकते.

ग़ुस्सा सबको आया था तब. आया था कि नहींसब पढ़े-लिखे अँग्रेज़ी बोलने वाले लोगों ने रुँधे गले से कहा था– दिस इज़ अनएक्सेप्टेबल.
फिर एक्सेप्ट कर लिया ना
अमिताभ बच्चन ने किया. अंबानी ने किया. रतन टाटा ने किया.
शरीफ़ा बीबी तुम बड़ी कि रतन टाटातुम बड़ी कि अंबानी और अमिताभ बच्चनरहो अपनी ज़िद पर अड़ी हुई. अरे कहाँ इतने नामवर लोग और कहाँ तुमकुछ सोचो.
अब देखो नाअहमदाबाद में अपने होटल के कमरे में बैठकर जिस समय तुमको मैं ये ख़त लिख रहा हूँ, टेलीविज़न की स्क्रीन से पूरे देश का ग़ुस्सा फटा पड़ रहा है.

दिल्ली की एक बस में चार लोगों ने नर्सिंग की पढ़ाई कर रही 23 साल की एक लड़की के साथ चार लड़कों ने बलात्कार कियालोहे के सरियों से उसके पेट पर इतने प्रहार किएकि उसकी आँते तक कुचल गईं. उस लड़की और उसके दोस्त के कपड़े उतारकर हमलावर उन दोनों को चलती बस से फेंक कर चलते बने. 

अभी फिर से सभी नेता और अभिनेता रो रहे हैं. कह रहे हैं कि दिस इज़ अनएक्सेप्टेबल. 

आज जिसे अनएक्सेप्टेबल कहा जाता हैपढ़े लिखे लोग कल उसे एक्सेप्टेबल मान लेते हैं या फिर उसका ज़िक्र ही नहीं करते.

तुम्हारी क्या मत्ति मारी गई हैशरीफ़ा बीबी?  तुम भी धीरे से कहना सीखो --दिस इज़ अनएक्सेप्टेबल. और फिर भूल जाओ. 

होश की दवा खाओशरीफ़ा बीबीहोश की दवा!

(नोटशरीफ़ा बीबी एक काल्पनिक चरित्र नहीं है. कई मरने वालों ने मरने से पहले इन्हें अपनी आँखों से देखा है. ज़िंदा लोग अब भी उन्हें देख सकते हैं. आप भी अगर ज़िंदा हैं तो इस ज़िद्दी औरत से अहमदाबाद की नरोदा पाटिया बस्ती में मुलाक़ात कर सकते हैं.)

-राजेश जोशी

3 comments:

Anup sethi said...

मन बहुत बौखलाया हुआ है. बिना पूछे यह रजेश जोशी का यह क्रंदन फेसबुक पे लगा दिया है

kavita verma said...

sach bahut boukhlahat hai...lekin unacceptable kya hai ye boukhlahat netao ke liye ya ye ghatna aam janta ke liye???

Anup sethi said...

हमारे घर में तीन लड़कियां हैं,बेटी, पत्‍नी और मां 20, 50 और 80 साल की. दिल्‍ली के हाल के इस प्रकरण पर पहली दोनों को बह़ुत गुस्‍सा है. एक को तो राजेश जोशी का स्‍वीकार कर लेने का यह स्‍टैंड भी नहीं जचा. कव‍िता में विवशता, विडंबना और करुणा है पर हमने ऐसा समाज रच डाला है और इतने जड़ हो गए हैं कि अब शायद एक्टिविस्‍ट बने गुजारा नहीं.