Thursday, December 6, 2012

भर्तृहरि की कवितायेँ – ५



कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी द्वारा किए गए ये अनुवाद गिरिराज किराडू और राहुल सोनी के सम्पादन में निकलने वाली द्विभाषी पत्रिका प्रतिलिपि के नवम्बर २०११ के अंक में छपी थीं. अगले कुछ अनुवादों को  वहीं से साभार लिया गया है –


संसार ! तव पर्यन्तपदवी न दवीयसी।
अन्तरा दुस्तरा न स्युर्यदि ते मदिरेक्षणाः॥

संसार !
तुमसे पार पाना
असंभव न था

अगर बीच में
मदिर नेत्रोंवाली
अनिन्द्य सुन्दरियाँ
न होतीं

1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

क्या बात है....
ये दोराहे क्यूँ आते हैं जीवन में...

अनु