Wednesday, December 5, 2012

भर्तृहरि की कवितायेँ – ४



कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी द्वारा किए गए ये अनुवाद वी. के. सोनकिया के सम्पादन में निकलने वाली अनियतकालीन पत्रिका आशय के सातवें अंक में छपी थीं. इन अनुवादों को वहीं से साभार लिया गया है –

कुंकुमपंककलंकिता देहा गौरपयोधरकम्पितहारा
नूपुरहंसरणत्पदपद्मा कं न वशीकुरुते भुवि रामा.

जिसकी
कुंकुम से अलंकृत
अरुणाभ देह है
गौर स्तनों पर
हिलता हुआ हार
चरण-कमलों में
हंस जैसे
घुंघरुओं की रुनझुन

वह सुन्दरी
इस संसार में
किसे
सम्मोहित नहीं करती?

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