कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी द्वारा
किए गए ये अनुवाद गिरिराज किराडू और राहुल सोनी के सम्पादन में निकलने वाली द्विभाषी
पत्रिका प्रतिलिपि के नवम्बर २०११ के अंक में छपी थीं. अगले कुछ अनुवादों को वहीं
से साभार लिया गया है –
रविनिशाकरयोर्ग्रहपीडनं
गजभुजंगमयोरपि बन्धनम् ।
मतिमतां च विलोक्य दरिद्रतां विधिरहो ! बलवानिति मे मतिः॥
मतिमतां च विलोक्य दरिद्रतां विधिरहो ! बलवानिति मे मतिः॥
सूर्य और चन्द्रमा को
ग्रहण के
हाथी और साँप को भी
बन्धन के
और विद्वानों को
ग़ुर्बत के
सन्ताप में
पड़ा देखकर
मुझे लगता है-
आह ! समय ही
बलवान है
ग्रहण के
हाथी और साँप को भी
बन्धन के
और विद्वानों को
ग़ुर्बत के
सन्ताप में
पड़ा देखकर
मुझे लगता है-
आह ! समय ही
बलवान है
2 comments:
वाह...
बहुत सुन्दर!!!
समय से कौन जीता...
आभार
अनु
काल बलवान है इसीलिए अकाल पुरुष की शरण लेना श्रेयस्कर बताया गया है ।
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