Friday, January 25, 2013

पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत - १


कविवर मंगलेश डबराल ने अपने द्वारा अनूदित रीता लेवेत द्वारा लिए गए पाब्लो नेरुदा के इस इंटरव्यू को नेरुदा के बीस प्रेम गीतों के अनुवाद वाली मेरी पुस्तक में जगह देने की अनुमति दी थी. आज से आप के लिए यह बातचीत प्रस्तुत है –


पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत

-अनुवाद  : मंगलेश डबराल

पाब्लो नेरुदा (१२ जुलाई १९०४ - २१ सितंबर १९७३) की मृत्यु हुए दो वर्ष से अधिक हो गयेउनकी रहस्यमय-सी मृत्यु पर हिन्दी दुनिया में विशेष चर्चा नहीं हुईशायद इसलिए कि उससे कुछ ही पहले नेरुदा को नोबेल पुरस्कार मिलने पर पक्ष-विपक्ष में थोड़ा-बहुत लिखा जा चुका था और उसके कुछ संग्रह भी दूकानों पर नजर आये थेलेकिन राष्ट्रपति आयेंदे की हत्या, फौजी तानाशाही की स्थापना और स्पेन की ही तरह, चीले की सड़कों पर भी आग, बारूद और शिशुओं का रक्तबहने के उस दौर में जब एक बड़े मानवीय स्वप्न का अंत हो रहा था, चीले की जनता और पश्चिम की बौद्धिक दुनिया को नेरुदा की याद थीइसीलिए जनरल पीनोशे को यह कहने का पाखंड करना पड़ा कि नेरुदा अगर मरे तो उनकी स्वाभाविक मृत्यु होगी‐’ अब भी कहा नहीं जा सकता कि उनकी मृत्यु, चीले के तानाशाहों के अनुसार, कैंसर से हुई कि चीले की जनता के उस स्वप्न के समाप्त हो जाने से, नेरुदा की कविताएं जिसका एक अभिन्न अंश थीआखिर, नेरुदा को दफनाते समय कब्रगाह में खड़े हजारों लोगों ने उस बर्बरता में भी फासिज्म-विरोधी नारे लगाये

नेरुदा से रीता लेवेत की यह बातचीत इस दृष्टि से काफी पुरानी हैः नोबेल पुरस्कार से भी पहले की, जब नेरुदा चीले के राष्ट्रपति-पद के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थेबाद में नेरुदा ने अपने निर्दलीय माक्र्सवादी मित्रा साल्वादोर आयेंदे के पक्ष में अपना नाम वापस ले लिया था ; आयेंदे के राष्ट्रपति होने पर नेरुदा फ्रांस में राजदूत नियुक्त किये गयेइस बातचीत का रोनाल्ड क्राइस्ट द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद १९७१ में पेरिस रिव्यू’ ; अंक ५१ में प्रकाशित हुआ था.

यह बातचीत कई चीजों के बारे में है और नेरुदा की कविता से अधिक उनके कविता संबंधी आग्रहों और तत्कालीन साहित्यिकता के प्रति उनके रवैयों को सामने रखती हैविस्तार-भय से वात्र्तालाप को कहीं-कहीं काटा भी गया है - मसलन, जासूसी उपन्यासों को पसंद करने की बात - लेकिन वे सभी बातें रहने दी गयी हैं जो आज भी किसी-न-किसी रूप में प्रासंगिक और शिक्षाप्रद लगती है

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आपने अपना नाम क्यों बदला, और पाब्लो नेरुदा क्यों रखा?

नेरुदा: याद नहीमैं कोई तेरह या चैदह साल का रहा हूंगाइतना याद है कि मेरी लेखक बनने की ख्वाहिश से मेरे पिता बहुत परेशान थेअपनी पूरी नेकनीयती के साथ उन्हें लगा कि मेरा लिखना सारे परिवार को और मुझे तबाह कर देगा, और खास तौर से मेरी जिंदगी इससे पूरी तरह नाकाम हो जायेगीउनकी इस आशंका के पीछे घरेलू वजह थी जिनकी गंभीरता का मुझे कोई ज्यादा अहसास नहीं था। इसके लिए जो सुरक्षात्मक कार्रवाइयां मैंने कीं, उनमें पहली थी: अपना नाम बदलना

आपने नेरुदा नाम चेक कवि यान नेरुदा से प्रेरित होकर अपनाया?

नेरुदा: यान नेरुदा की एक कहानी मैंने पढ़ी थी। उनका काव्य मैंने कभी नहीं पढ़ा, लेकिन माला स्त्राना की कथाएंनाम की उनकी एक किताब है: प्राग के आसपास के शरीफ लोगों के बारे मेसंभव है कि मैंने उसी से अपना नया नाम लिया होजैसा मैंने बताया है, यह सब मेरी स्मृति में इतनी दूर पड़ गया है कि मुझे बिल्कुल याद नहीं आ रहा हैलेकिन चेकोस्लोवाकिया की जनता मुझे अपना आदमी मानती है, अपने राष्ट्र के एक अंश की तरह, और मेरी उनसे गहरी मित्रता है

आप अगर चीले के राष्ट्रपति चुन लिये जायें, तब भी लिखना जारी रखेंगे?

नेरुदा: लिखना मेरे लिए सांस लेने जैसा है। सांस लिये बिना मैं जीवित नहीं रह सकता और  लिखे बिना भी मैं जीवित नहीं रह सकता

ऐसे कौन कवि हैं जो उच्च राजनीतिक पदों तक गये हों और सफल हुए हों?

नेरुदा: हमारा दौर कवि-शासकों का दौर है: माओ त्से तुंग और हो ची मिन्ह कामाओ त्से तुंग में तो दूसरी विशेषताएं भी हैं: आप जानते हैं, वह महान तैराक भी है जो कि मैं नहीं हूऔर  भी एक बड़े कवि  हैं: लियोपोल्ड सेंगोरवह सेनेगल के राष्ट्रपति हैमेरे देश में हालांकि कोई कवि राष्ट्रपति नहीं, पर यहां की राजनीति में कवियों का हमेशा दखल रहा हैदूसरी ओर, लातिन-अमरीका के कई लेखक राष्ट्रपति हुए हैं: रोमियो खासखोस वेनेज्वेला के राष्ट्रपति थे

आप अपना राष्ट्रपति-पद का चुनाव-अभियान किस तरह चला रहे हैं?

नेरुदा: एक मंच तैयार किया जाता हैसबसे पहले हमेशा लोकगीत गाये जाते हैं फिर कोई प्रभारी हमारे अभियान के सुनिश्चित राजनीतिक प्रयोजन को समझाता हैउसके बाद स्थानीय लोगों से संवाद करने के लिए मैं जो वक्तव्य देता हूं वह काफी स्वच्छन्द किस्म का होता हैः वह काव्यात्मक ज्यादा होता हैप्रायः हमेशा मैं अन्त में कविता-पाठ करता हूँकविता न पढ़ूं तो लोग हताश होकर लौट जाते हैबेशक, वे मेरे राजनीतिक विचार भी सुनना चाहते हैं, लेकिन मैं राजनीतिक या आर्थिक पहलुओं पर अधिक मेहनत नहीं करता क्योंकि जनता एक दूसरी तरह की भाषा भी चाहती है

आपके कविता-पाठ के दौरान लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है?

नेरुदा: वे मुझे बहुत ही भावुक तरीके से प्यार करते हैंकुछ जगहों में तो मेरा आना-जाना दूभर हो जाता हैभीड़ से बचाने के लिए मेरे साथ एक विशेष अनुरक्षी रहता है, क्योंकि लोग मुझे घेर लेते हैहर जगह यही होता है

(जारी)

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