१९७६ में लिखी गई आलोक धन्वा की यह कविता विशेषतः मित्र – कहानीकार नवीन कुमार नैथानी द्वारा याद दिलाए जाने पर लगाई जा रही है-
१९७६
में लिखी गई आलोक धन्वा की यह कविता विशेषतः मित्र – कहानीकार नवीन कुमार नैथानी
द्वारा याद दिलाए जाने पर लगाई जा रही है-
पतंग
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आलोक धन्वा
१.
उनके रक्तों से ही फूटते हैं पतंग के धागे
और
हवा की विशाल धाराओं तक उठते चले जाते हैं
जन्म से ही कपास वे अपने साथ लाते हैं
और
हवा की विशाल धाराओं तक उठते चले जाते हैं
जन्म से ही कपास वे अपने साथ लाते हैं
धूप
गरुड़ की तरह बहुत ऊपर उड़ रही हो या
फल की तरह बहुत पास लटक रही हो-
हलचल से भरे नींबू की तरह समय हरदम उनकी जीभ
पर रस छोड़ता रहता है
तेज़ आँधी आती है और चली जाती है
तेज़ बारिश आती है और खो जाती है
तेज़ लू आती है और मिट जाती है
लेकिन वे लगातार इंतज़ार करते रहते हैं कि
कब सूरज कोमल हो कि कब सूरज कोमल हो कि
कब सूरज कोमल हो और खुले
कि कब दिन सरल हों
कि कब दिन इतने सरल हों
कि शुरू हो सके पतंग और धागों की इतनी नाज़ुक दुनिया
फल की तरह बहुत पास लटक रही हो-
हलचल से भरे नींबू की तरह समय हरदम उनकी जीभ
पर रस छोड़ता रहता है
तेज़ आँधी आती है और चली जाती है
तेज़ बारिश आती है और खो जाती है
तेज़ लू आती है और मिट जाती है
लेकिन वे लगातार इंतज़ार करते रहते हैं कि
कब सूरज कोमल हो कि कब सूरज कोमल हो कि
कब सूरज कोमल हो और खुले
कि कब दिन सरल हों
कि कब दिन इतने सरल हों
कि शुरू हो सके पतंग और धागों की इतनी नाज़ुक दुनिया
२.
सबसे
काली रातें भादों की गयीं
सबसे काले मेघ भादों के गये सबसे तेज़ बौछारें भादों की मस्तूतलों को झुकाती, नगाड़ों को गुँजाती डंका पीटती- तेज़ बौछारें कुओं और तलाबों को झुलातीं लालटेनों और मोमबत्तियों को बुझातीं ऐसे अँधेरे में सिर्फ़ दादी ही सुनाती है तब अपनी सबसे लंबी कहानियाँ कड़कती हुई बिजली से तुरत-तुरत जगे उन बच्चोंह को उन डरी हुई चिड़ियों को जो बह रही झाड़ियो से उड़कर अभी-अभी आयी हैं भीगे हुए परों और भीगी हुई चोंचों से टटोलते-टटोलते उन्होंने किस तरह ढूँढ लिया दीवार में एक बड़ा सा सूखा छेद ! चिड़ियाँ बहुत दिनों तक जीवित रह सकती हैं- अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें बच्चेप बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें भूख से महामारी से बाढ़ से और गोलियों से मारते हैं आप उन्हें बच्चों को मारने वाले आप लोग ! एक दिन पूरे संसार से बाहर निकाल दिये जायेंगे बच्चों को मारने वाले शासकों ! सावधान ! एक दिन आपको बर्फ़ में फेंक दिया जायेगा
जहाँ
आप लोग गलते हुए मरेंगे
और आपकी बंदूकें भी बर्फ़ में गल जायेंगी
३.
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादों गया सवेरा हुआ ख़रगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा शरद आया पुलों को पार करते हुए अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चमकीले इशारों से बुलाते हुए पतंग उड़ानेवाले बच्चों के झुंड को चमकीले इशारों से बुलाते हुए और आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए कि पतंग ऊपर उठ सके- दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके दुनिया का सबसे पतला काग़ज़ उड़ सके- बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके- कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास जब वे दौड़ते हैं बेसुध छतों को भी नरम बनाते हुए दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर छतों के खतरनाक किनारों तक- उस समय गिरने से बचाता है उन्हें सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत पतंगों की धड़कती ऊचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं अपने रंध्रों के सहारे अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हूई आती है उनके बेचैन पैरों के पास. |
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