Wednesday, January 2, 2013

मुझे अच्छा लगता यह सुबकना, यह फैलाव - अदूनिस की कविता - १



सीरिया में १९३० में जन्मे सीरियाई लेबनानी मूल के कवि, साहित्यालोचक, अनुवादक, और सम्पादक अदूनिस (मूल नाम अली अहमद सईद) अरबी साहित्य और कविता का एक अत्यंत प्रभावशाली नाम हैं. अपने राजनैतिक विचारों के लिए अदूनिस को अपनी ज़िन्दगी का एक हिस्सा जेल में बिताना पड़ा था. १९५६ में अपना मूल देश त्यागने के बाद अदूनिस लेबनान में रहने लगे. मैं एक ऐसी भाषा में लिखता हूँ जो मुझे निर्वासित कर देती है,” उन्होंने एक दफा कहा था. कवि होने का मतलब यह हुआ कि मैं कुछ तो लिख ही चुका हूँ पर वास्तव में लिख नहीं सका हूँ. कविता एक ऐसा कार्य है जिसकी न कोई शुरुआत होती है न अंत. यह असल में एक शुरुआत का वायदा होती है, एक सतत शुरुआत.उनका नाम इधर अरबी कविता में आधुनिकतावाद का पर्याय बन चुका है. कई बार अदूनिस की कविता क्रांतिकारी होने के साथ साथ अराजक नज़र आती है; कई बार रहस्यवाद के क़रीब. उनका रहस्यवाद मूलतः सूफी कवियों के लेखन से गहरे जुड़ा हुआ है. यहाँ उनका प्रयास रहता है मनुष्य के अस्तित्व के विरोधाभासी पहलुओं के नीचे मौजूद एकात्मकता को और ब्रह्माण्ड के बाहर से अलग अलग दीखने वाले तत्वों की मूलभूत समानता को उद्घाटित कर सकें. लेकिन अलबत्ता उनकी कविता रहस्यवाद और क्रान्ति के दो ध्रुवों के बीच की चीज़ नज़र आती है, ये दोनों ध्रुव उस में घुलकर एक सुसंगत निगाह में बदल जाते हैं और यही उनके कविकर्म की विशिष्टता है.  एक नई काव्य भाषा का निर्माण कर पाने का उनका संघर्ष और आर्थिक-राजनैतिक वास्तविकताओं को बदलने की उनकी आकांक्षा अक्सर एक नई पोयटिक्स में तब्दील हो जाती है एक पोयटिक्स जो अल-ज़ाहिर (प्रत्यक्ष) से ढंके अल-बातिन (गुप्त) को उद्घाटित कर सकने वाली मानवीय रचनात्मकता को रेखांकित करती है.

आज शुरू करते हैं इस महान कवि की दो रचनाओं से -

१.

संशय की शुरुआत

यह मैं हूँ जन्म लेता हुआ
खोजता लोगों को.
            मुझे अच्छा लगता यह सुबकना, यह फैलाव.
            भली लगती है यह धूल भवों को ढंकने वाली. मैं दमक रहा हूँ.
मैं लोगों को तलाश रहा हूँ पानी का एक सोता और चिंगारियां.
मैं अपनी ड्राइंग्स को पढ़ता हूँ, कुछ नहीं सिवा हुड़क के,
                        और यह महिमा
लोगों की धूल में. 

२.

रेगिस्तान

शहर के शहर ग़ायब हो जाते हैं, और धरती है धूल से लदी एक ठेलागाड़ी
सिर्फ़ कविता जानती है इस विस्तार में अपनी जगह कैसे बनाए.

इस घर को जाने वाला कोई रास्ता नहीं, एक घेराबंदी,
और कब्रिस्तान है उसका घर.
          दूर से देखें तो इस घर के ऊपर
धूल के धागों से टंगा
          एक हैरान चन्द्रमा झूलता है.

मैंने कहा: यह घर का रास्ता है, उसने कहा: नहीं
          तुम यहाँ से नहीं जा सकते, और उसने अपनी बन्दूक मुझ पर तान दी.
तब ठीक है, सारे बेरूत में रहने वाले दोस्त और उनके घर
          मेरे साथी हैं.

अब रक्त के लिए सड़क –
          रक्त जिसके बारे में एक लड़का बातें कर रहा था
          फुसफुसाता हुआ अपने दोस्तों से:
                   आसमान में कुछ नहीं बचा है अब
                   सिवा “सितारे” कहे जाने वाले सूराखों के.

ज़्यादा ही मुलायम थी शहर की आवाज़, यहाँ तक कि हवाओं ने भी
अपने तारों के सुर नहीं मिलाए –
शहर का चेहरा दमक रहा था
एक बच्चे की तरह जो रात के घिरने के लिए अपने सपनों को तरतीब से लगा रहा हो
जो सुबह से अनुरोध कर रहा हो उसकी कुर्सी पर उसकी बगल में बैठे रहने को.

उन्हें थैलों में मिले लोग:
          एक आदमी      बिना सर का
          एक आदमी      बिना हाथों, बिना जीभ का
          एक आदमी      मर जाने तक जिसका दम घोंटा गया था
बाकियों की न कोई आकृति थी न कोई नाम थे उनके.
-      क्या तुम पागल हो? मेहरबानी कर के
मत लिखो ऐसी बातें.
एक किताब का एक पन्ना
          उसके भीतर बम देखते हैं अपने ही अक्स
          भविष्यवाणियाँ और धूलभरे मुहाविरे देखते हैं अपने ही अक्स उसके भीतर
          अकेले मठ देखते हैं अपने अक्स उसके भीतर, तार तार होना शुरू होता है
                   अक्षरों से बना एक ग़लीचा और
गिरता है शहर के चेहरे पर, स्मृति की सुइयों से बाहर सरकता हुआ.
शहर की हवा में एक हत्यारा है, तैरता हुआ उसके घाव में –
एक पतन है उसका घाव
जो कांपा उसके नाम पर – उसके नाम के रक्तस्राव पर
और उस सब पर जो घेरे हुए है हम सब को –
मकानात पीछे छोड़ गए अपनी दीवारें
          और अब मैं नहीं बचा हूँ मैं.

हो सकता है एक समय आएगा जब तुम स्वीकार कर लोगे
गूंगे बहरे बनकर जिंदा रहना, हो सकता है
वे आपको इजाज़त दे दें  बुदबुदाने की: मृत्यु
          और जीवन     
          पुनरुज्जीवन    
          तुम्हारे वास्ते शान्ति.

खजूर की शराब से रेगिस्तान की शान्ति तक ... वगैरह-वगैरह
एक सुबह से जो करती है अपनी ही आँतों की तस्करी
          और सोती है विद्रोहियों की लाशों पर ... वगैरह-वगैरह
सड़कों से, ट्रकों तक
          सिपाहियों, सेनाओं से ... वगैरह-वगैरह
आदमियों-औरतों की छायाओं से ... वगैरह-वगैरह
नास्तिकों और एकेश्वरवादियों की प्रार्थनाओं में छिपे बमों से ... वगैरह-वगैरह
लोहे से जिस से रिसता है लोहा और मांस का रक्त बाहर आता है ... वगैरह-वगैरह
गेहूं, घास और कामगार हाथों की हसरतों वाले खेतों से ... वगैरह-वगैरह
वध है जो, उस बात से  और वध         और     गले चाक करने वाले ... वगैरह-वगैरह
अँधेरे से अँधेरे तक
मैं सांस लेता हूँ, अपने शरीर को छूता हूँ, खोजता हूँ ख़ुद को
          और तुम्हें और उसे और बाक़ियों को

और मैं टांग देता हूँ अपनी मौत को
अपने चेहरे और रक्तस्राव जैसी उसकी बातों के बीच ... वगैरह-वगैरह

तुम देखोगे –
          नाम लो उसका
          कहो तुमने चित्र बनाया उसके चेहरे का
          अपना हाथ बाधाओं उसकी तरफ
          या मुस्कराओ
          या उस से कहो कभी खुश था मैं
          या उस से कहो कभी उदास था मैं
          टीम देखोगे
                   अब वहां कोई देश नहीं है.

हत्या ने शहर की सूरत बदल दी है – एक बच्चे  का सर है
                             यह पत्थर –
और यह धुआं इंसानी फेफड़ों ने बाहर निकाला है.
हरेक चीज़ अपने निर्वासन का पाठ करती है ... रक्त का
                             एक समुद्र – और इन सुबहों को तुम
क्या उम्मीद करते हो सिवा उनकी धमनियों के
अँधेरे के सफ़र पर निकल पड़ने के, हत्या के ऊंची उठ रहे ज्वार की तरफ?

जागे रहो उसके साथ, थको मत –
वह बैठी है मौत को अपने आगोश में लिए
और पलटती है अपने दिनों को
                             कागज़ के जर्जर पन्नों पर.
उसके भूगोल की
आख़िरी तस्वीरों की निगरानी करो –
वह करवटें बदल रही है रेत पर
चिंगारियों के एक समुन्दर में –
उसकी देहों पर
इंसानी कराहों के धब्बे हैं.

बीज दर बीज फेंके जाते हैं हमारी धरती पर –
खेत पोसे जाते हुए हमारी गाथाओं से,
इन रक्तों के रहस्य की निगरानी करो.
                   मैं बात कर रहा हूँ मौसमों के लिए एक स्वाद की
                   और आसमान में बिजली की एक कौंध की.

टावर स्क्वायर* - (एक नक्काशी फुसफुसाती है बम से उड़ा दिए गए
                   पुलों के कानों में अपने रहस्य ...)
टावर स्क्वायर – ( धूल और आग के बीच एक
                   स्मृति खोजती है अपना आकार ...)
टावर स्क्वायर – (एक खुला हुआ रेगिस्तान
                   जिसे चुना हवाओं ने और जिस पर ... उन्होंने थूका)
टावर स्क्वायर – (जादुई होता है
                   शवों को गतिमान देखना/ उनके हाथ पैर
                   एक गलियारे में, और उनके प्रेत
                   दूसरे में/ और सुनना उनकी कराहों को ...)
टावर स्क्वायर – (पश्चिम और पूर्व
                   और फांसी के तख्ते लगा दिए जा चुके –
                   शहीदान, आदेश ...)
टावर स्क्वायर – (कारवानों का
                   एक हुजूम: इत्र
                             और अरबी गोंद और कस्तूरी
                                      और मसाले जिनसे आग़ाज़ होता है उत्सव का ...)
 टावर स्क्वायर – (जगह के नाम पर
                   ... मुक्त छोड़ दो समय को)
-लाशें या विनाश,
          क्या यह है बेरूत का चेहरा?
-और यह
          कोई घंटी या चीख़?
-एक दोस्त?
-तुम? ख़ुशआमदीद.
          क्या तुम यात्रारत हो? क्या तुम लौट आए हो? तुम्हारे साथ नया क्या घटा?
-एक पड़ोसी मारा गया .../
...
कोई खेल/
-तुक्का चल गया तुम्हारा.
-अरे, यूँ ही इत्तेफाक़न/
...
                   परत-दर-परत अँधेरा 
                   बात घिसटती जाती है बात पर ही.

(टावर स्क्वायर- बेरूत नगर के केन्द्रीय इलाक़े में एक चौराहा.)

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