Tuesday, January 15, 2013

शब्दों को बन जाने दो एक कविता जो पहने होती है समुद्र का चेहरा



पानी का रंग

-अदूनिस 

ओ शब्दों की देह
पानी का रंग होता है तुम्हारा रंग,
जब पानी होता है ख़मीर
या बिजली या आग –

और पानी से लपटें उठीं 
और वह बन गया बिजली,
ख़मीर और आग बन गया
और वाटरलिली के फूल
जो मेरे तकिये के बारे में पूछते हैं
और सो जाते हैं.

ओ शब्दों की नदी,
मेरे साथ यात्रा करो दो दिनों के लिए,
दो हफ़्तों के लिए,
रहस्य की ख़मीर में
समुद्र को उठाने और घोंघों की खोज करने.
चलो  पन्नों और आबनूस की बारिश करें
सीखने को
कि जादू एक काली अप्सरा होता है
जो सिर्फ और सिर्फ समुद्र से प्यार करती है.

मेरे साथ यात्रा करो,
यहाँ प्रकट होती, वहां ग़ायब होती.
और ओ शब्दों की नदी,
मेरे साथ पूछो
उन सीपियों की बाबत जो
एक लाल बादल बनने के लिए मरती हैं
और बरसती हैं बारिश के साथ,
 एक द्वीप की बाबत
जो टहलता है या उड़ता है.

और मेरे साथ पूछो
ओ शब्दों की नदी,
पानी के जाल में
बंधक एक सितारे के बारे में,
जो अपने सीने तले
लिए जा रहा है
मेरे आख़िरी दिनों को.

और मेरे साथ पूछो
ओ शब्दों की नदी,
एक पत्थर के बारे में जिसमें से बहता है पानी,
एक लहर के बारे में जिस में से जन्म लेती हैं चट्टानें,
कस्तूरी धारण किये एक पशु के बारे में
और रोशनी के एक फाख्ते के बारे में.

और मेरे साथ उतरो
ओ शब्दों की नदी,
अँधेरे के जालों तक
तल में
जहाँ पड़ा हुआ है टूटा हुआ समय.

शब्दों को बन जाने दो
एक कविता जो पहने होती है
समुद्र का चेहरा.

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