Tuesday, December 31, 2013

नया साल यानी नई क़समें

ख्यात जापानी कवि शुन्तारो तानीकावा की यह कविता में एकाधिक दफ़ा पहली जनवरी को कबाड़खाने पर लगा चुका हूँ. आज वही एक बार फिर से -


नए साल की क़समें 

क़सम खाता हूं शराब और सिगरेट पीना नहीं छोड़ूंगा
क़सम खाता हूं, जिन से नफ़रत करता हूं उन्हें नहला दूंगा नीच शब्दों से
क़सम खाता हूं, सुन्दर लड़कियों को ताका करूंगा
क़सम खाता हूं हंसने का जब भी उचित मौका होगा, खूब खुले मुंह से हंसूंगा
सूर्यास्त को देखा करूंगा खोया खोया
फ़सादियों की भीड़ को देखूंगा नफ़रत से
क़सम खाता हूं दिल को हिला देने वाली कहानियों पर रोते हुए भी सन्देह करूंगा
दुनिया औए देश के बारे में दिमागी बहस नहीं करूंगा
बुरी कविताएं लिखूंगा और अच्छी भी
क़सम खाता हूं समाचार संवाददाताओं को नहीं बताऊंगा अपने विचार
क़सम खाता हूं दूसरा टीवी नहीं खरीदूंगा
क़सम खाता हूं अंतरिक्ष विमान चढ़ने की इच्छा नहीं करूंगा
क़सम खाता हूं कसम तोड़ने का अफ़सोस नहीं करूंगा
इस की तस्दीक में हम सब दस्तख़त करते हैं.

(जापानी कवि शुन्तारो तानीकावा की यह अति प्रसिद्ध कविता 2008 में संवाद प्रकाशन से छ्पी उन के अनुवादों की पुस्तक 'एकाकीपन के बीस अरब प्रकाशवर्ष' का हिस्सा है.)

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

मुनीश ( munish ) said...

बहुत खूब । शुन्तारो जी की क़स्में मासूम हैं लेकिन रब्बा मैं की करां । धन्यवाद ।