Monday, January 7, 2013

वरुणा ने कहा था जिस दिन मुझे सचमुच प्यार करोगे



सुनील गांगुली की कविता
(बांग्ला से अनुवाद - लाल्टू

किसी ने अपनी बात न रखी

किसी ने अपनी बात न रखीतैंतीस बरस गुज़र गएकिसी ने अपनी बात न रखी

बचपन में एक जोगन अपना आगमनी गीत अचानक रोक कर कह गई थी
शुक्ल द्वादशी के दिन अंतरा सुना जाएगी
फिर कितनी चाँद निगली अमावस गुज़र गईं
पर वह जोगन कभी न लौटी
पच्चीस सालों से इंतज़ार में हूँ.

मामा के गाँव का माझी नादिर अली कहता थाबड़े हो लो भैया जी,
तुम्हें मैं तीसरे पहर का पोखर दिखलाने ले जाऊँगा
वहाँ कमल के फूल पर चढ़ साँप और भौंरे साथ खेलते हैं!
नादिर अलीमैं और कितना बड़ा होऊँगामेरा सिर इस घर की छत
फोड़ आस्मान छू ले तो तुम मुझे तीसरे पहर का पोखर दिखलाओगे?

एक भी बड़ा कंचा खरीद न पाया कभी
काठी वाला लवंचूस दिखा-दिखाकर चूसते रहे लस्करों के बेटे
मंगतों की तरह चौधरीओं के गेट पर खड़े देखा भीतर चल रहारास-उत्सव
लगातार रंगों की बौछार में सोने के कंगन पहनी
गोरी रमणियाँ
किस्म किस्म की रंगरेलियों में वे हँसती रहीं
मेरी ओर उन्होंने मुड़ कर भी नहीं देखा!
पिता ने मेरा कंधा छूकर कहा थादेखनाकिसी दिन हम लोग भी....
पिता अब दृष्टिहीन हैंहमने कुछ भी देखा नहीं
वह बड़ा कंचावह काठी वाला लवंचूसवह रास-उत्सव
मुझे कोई नहीं लौटाएगा!

सीने में सुगंधित रुमाल रख वरुणा ने कहा था
जिस दिन मुझे सचमुच प्यार करोगे
उस दिन मेरे भी सीने में ऐसी इत्र की महक होगी!
प्रेम के लिए मुट्ठियों में जान रखी
खौफनाक साँड़ की आँखों को लाल कपड़े से बाँधा
कायनात का कोना कोना ढूँढ ले आया १०८ नील कमल
फिर भी वरुणा ने बात न रखीअब उसके सीने से महज जिस्म की बू आती है
अब भी वह कोई भी औरत है.

किसी ने अपनी बात न रखीतैंतीस बरस गुज़र गएकोई अपनी बात नहीं रखता है!

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