Saturday, January 26, 2013

पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत - २



पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत - २

-अनुवाद  : मंगलेश डबराल

(पिछली कड़ी से आगे)

नोबेल पुरस्कार, जिसके लिए आपका नाम अक्सर लिया गया है और चीले का राष्ट्रपति-पद-इन दो में से अगर किसी एक का चुनाव करना हो तो आप क्या चुनेंगे?

नेरुदा: इस तरह की अवास्तविक चीजों के चुनाव का प्रश्न ही नहीं उठता

लेकिन अगर राष्ट्रपति-पद और नोबेल पुरस्कार दोनों को ही मेज पर लाकर रख दिया जाये तो?

नेरुदा: तो मैं उठकर दूसरी मेज पर चला जाउंगा

आपके विचार से, सेमुअल बेकेट को नोबेल पुरस्कार दिया जाना ठीक था?

नेरुदा: मेरे ख्याल से ठीक थाबेकेट संक्षिप्त लेकिन गहरी चीजें लिखते हैंनोबेल पुरस्कार जिस किसी को भी मिले, वह हमेशा साहित्य का सम्मान हैपुरस्कार को लेकर जो लोग हमेशा इस पर बहस करते हैं कि पुरस्कार सही आदमी को मिला है कि नहीं, मैं उनमें से नहीं हूंइस पुरस्कार में महत्त्व है तो यह है कि वह लेखक नाम की संस्था को सम्मान की उपाधि से अलंकृत करता हैयही एक चीज है जो महत्त्वपूर्ण है

आपकी सबसे सशक्त स्मृतियां क्या हैं?

नेरुदा: पता नहीसबसे उत्कट स्मृतियां शायद स्पेन में बीती जिन्दगी की हैं - कवियों की उस महान बिरादरी कीहमारी इस अमरीकी दुनिया में मैंने कभी ऐसी बिरादराना टोली नहीं देखी जो, ब्वेनोस आयरेस के मुहावरे में कहूं तो, इस कदर गपोडि़यों से भरी हुई होफिर बाद में, यह देखना भयावह था कि मित्रों के उस गणराज्य को गृहयुद्ध ने ध्वस्त कर दिया, जिसमें फासिस्ट दमन की भीषण सच्चाई सामने आयीसारे दोस्त बिखर गयेः कुछ उसी जगह मार डाले गये - मसलन गार्सिया लोर्का और मीगेल एरनांदेसकुछ की मृत्यु निर्वासन में हुई, और कुछ और अब तक निर्वासित होकर जी रहे हैंमेरी जि़्न्दगी का वह समूचा दौर घटनाओं से, गहरे भावावेशों से भरपूर रहा और उसने मेरे जीवन की गति में निर्णायक परिवर्तन किया

क्या आपको अब स्पेन जाने की अनुमति मिल जायेगी?

नेरुदा: मेरा वहां प्रवेश सरकारी तौर पर निषिद्ध नहीं हैएक बार वहां चीले के दूतावास ने कविता-पाठ के लिए मुझे बुलाया भी थाबहुत संभव है कि वे मुझे जाने देंलेकिन मैं इसे कोई सैद्धांतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहता: इसलिए कि स्पेन की सरकार बड़ी आसानी से ऐसे लोगों को, जो कि उसके खिलाफ ज़्ाबर्दस्त ढंग से लड़े थे, अपने यहां प्रवेश करने की अनुमति देकर कुछ लोकतंत्रीय भावनाओं का प्रदर्शन कर सकती थीकह नहीं सकतामुझे इतने देशों में जाने से रोका गया है और इतने देशों से निकाल बाहर किया गया है कि अब इससे मुझे कतई क्षोभ नहीं होता, जैसा कि पहले-पहले होता था

गार्सिया लोर्का के लिए लिखे गये आपके ओड में एक तरह से उनकी दुखद मृत्यु की भविष्यवाणी है

नेरुदा: हां, वह विचित्र कविता हैविचित्र इसलिए कि वह इतना सुखी व्यक्ति था, इतना प्रफुल्ल प्राणीमैंने उस जैसे लोग बहुत कम देखेवह सचमुच अवतार था....सफलता का न कहें, बल्कि जिन्दगी के प्यार का अवतारउसने अपने अस्तित्व के हरेक क्षण का उपभोग कियावह प्रसन्नता के भंडार को मुक्त हस्त लुटाने वाला आदमी थाइस वजह से भी उसकी हत्या का अपराध फासिज़्म के सबसे अक्षम्य अपराधों में से है

आपकी कविताओं में अक्सर उनका उल्लेख हुआ है, और मीगेल एरनांदेस का भी

नेरुदा: एरनांदेस बेटे की तरह थाकवि के रूप में वह मेरे लिए शिष्यवत् था और वह प्रायः मेरे ही मकान में रहता थावह जेल गया और वहीं मरा, क्योंकि उसने गार्सिया लोर्का की मृत्यु के सरकारी कारण को नहीं मानाफासिस्ट सरकार के बयान में अगर सच्चाई थी तो उसने मीगेल एरनांदेस को मौत तक सींखचों में बन्द क्यों रखा? उसने चीले के दूतावास का यह सुझाव क्यों स्वीकार नहीं किया कि उसे अस्पताल में ले जाया जाये। मीगेल एरनांदेस की मृत्यु भी एक हत्या थी

भारत-प्रवास के समय की कौन-सी बातें आपको सबसे अधिक याद आती हैं?

नेरुदा: वहां अपने प्रवास के दिनों में मैंने जो कुछ देखा, उसके लिए मैं तैयार नहीं थाउस अपरिचित महाद्वीप की भावना ने हालांकि मुझे अभिभूत कर दिया लेकिन वहां मेरी जि़्न्दगी इतनी लम्बी और अकेली थी कि मैं भयंकर निराशा में रहाकभी ऐसा लगता जैसे मैं किसी अन्तहीन रंगबिरंगी तस्वीर मे फंस गया हूं: एक अद्भुत फिल्म में, जहां से बाहर नहीं आया जा सकताभारत में मुझे कभी उस रहस्यात्मकता का अनुभव नहीं हुआ, जिसने कितने ही दक्षिण अमरीकियों और दूसरे विदेशियों को राह दिखायी हैजो लोग अपनी चिंताओं के किसी धर्मिक समाधान की खोज में भारत जाते हैं वे चीजों को और ही तरह से देखते हैजहां तक मेरा संबंध है, मुझ पर समाजशास्त्रीय परिस्थितियों का गहरा असर हुआ - विशाल निःशस्त्र राष्ट्र, बेहद सुरक्षाहीन, अपने शाही जुए में जकड़ा हुआयहां तक कि अंग्रेजी संस्कृति भी, जिससे मुझे खासा अनुराग था, वहां घिनौनी लगी, क्योंकि उने उस समय के कितने ही हिंदुओं को बौद्धिक गुलामी के लिए विवश कर दिया थामैं महाद्वीप के विद्रोही युवकों के बीच रहा: अपने कौंसुल रूप के बावजूद उस बड़े संघर्ष के सारे क्रांतिकारियों से मेरी मुलाकात थी जिसने अन्ततः आज़ादी हासिल की

धरती पर घरकी कविताएं आपने भारत में लिखीं?

नेरुदा: हां, यद्यपि कविता पर भारत का बौद्धिक प्रभाव कम पड़ा

आर्खेतीना के एक्तोर एयांदी के नाम वे मार्मिक पत्र भी आपने भारत से लिखे थे?

नेरुदा: हां, वे मेरे जीवन के बड़े महत्त्वपूर्ण पत्र थेपर उनसे मेरा लेखक के रूप में व्यक्तिगत परिचय नहीं था, फिर भी एक अच्छे समैरिटन की तरह उन्होंने मुझे समाचार, पत्रिकाएं भेजने और मेरे विराट अकेलेपन को कम करने का जिम्मा लियामुझे अपनी ही भाषा से संपर्क टूट जाने की आशंका हो गयी थी: वर्षों तक मुझे एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला जिससे स्पानी में बात कर सकूं राफायल आलबेर्ती को मैंने एक पत्र में स्पेनी का शब्दकोष भेजने के लिए लिखामैं वहां कौंसुल के पद पर नियुक्त हुआ था, लेकिन वह निम्न श्रेणी का पद था और कोई वजीफा नहीं मिलता थावहां मैं घोर ग़रीबी में रहा और उससे भी घोर अकेलेपन मेहफ्तों तक किसी दूसरे प्राणी के दर्शन नहीं होते थे

वहां आपको खोसिये ब्लिस के साथ बहुत तगड़ा प्रेम थाआपकी अनेक कविताओं में उसका जिक्र है।

नेरुदा: हां, खोसिये ब्लिस एक ऐसी स्त्री थी जिसका मेरी कविता पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा‐  मैं उसका वरण करता रहा हूं: अपनी सबसे ताजा पुस्तकों में भी

तब तो आपके कृतित्व का आपकी व्यक्तिगत का आपकी व्यक्तिगत जि़्ान्दगी से घनिष्ठ से घनिष्ठ संबंध है?

नेरुदा: बिल्कुलकविता में कवि के जीवन का प्रतिबिंब होगा हीयह कला का नियम है और कविता का भी

(जारी)

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