मैं अब और दुःखों की
- लाल्टू
१.
मैं अब और दुःखों की बात नहीं
करना चाहता
दुःख किसी भी भाषा में दुनिया का सबसे गंदा शब्द है
एक दुःखी आदमी की शक्ल
दुनिया की सबसे गंदी शक्ल है
मुझे उल्लास शब्द बहुत अच्छा लगता है
उल्लसित उच्चरित करते हुए
मैं आकाश बन जाता हूँ
मेरे शरीर के हर अणु में परमाणु होते हैं स्पंदित
जब मैं कहता हूँ उल्लास।
२.
दुःख किसी भी भाषा में दुनिया का सबसे गंदा शब्द है
एक दुःखी आदमी की शक्ल
दुनिया की सबसे गंदी शक्ल है
मुझे उल्लास शब्द बहुत अच्छा लगता है
उल्लसित उच्चरित करते हुए
मैं आकाश बन जाता हूँ
मेरे शरीर के हर अणु में परमाणु होते हैं स्पंदित
जब मैं कहता हूँ उल्लास।
२.
कौन सा निर्णय सही है
शास्त्रीय या आधुनिक
उत्तर या दक्षिण
दोसा या ब्रेड
सवालों से घिरा हूँ
३.
चोट देने वाले को पता नहीं कि वह चोट दे रहा है
जिसे चोट लगी है वह नहीं जानता कि चोट थी ही नहीं
ऐसे ही बनता रहता है पहाड़ चोटों का
जो दरअस्ल हैं ही नहीं
पर क्या है या नहीं
कौन जानता है
यह है कि दुःखों का पहाड़ है
जो धरती पर सबसे ऊँचा पहाड़ है
संभव है उल्लास का पहाड़ भी ऊँचा हो इतना ही
जो आँख दुःखों का पहाड़ देखती है वह
नहीं देख पाती मंगल मंदिर
यह नियति है धरती की
कि उसे ढोना है दुःखों का पहाड़।
४.
जो लौटना चाहता है
कोई उसे समझाओ कि
लौटा नहीं जा सकता
अथाह समंदर ही नहीं
समांतर ब्रह्माण्ड पार हो जाते हैं
जब हम निर्णय लेते हैं कि
एक दुनिया को ठेंगा दिखाकर आगे बढ़ना है
लौटा नहीं जा सकता ठीक ठीक वहाँ
जहाँ वह दुनिया कभी थी
यह विज्ञान और अध्यात्म की अनसुलझी गुत्थी है
कि क्यों नहीं बनते रास्ते वापस लौटने के
क्यों नहीं रुकता टपकता आँसू और चढ़ता वापस
आँख की पुतली तक।
शाम अँधेरे
आदमी बढ़िया था
कभी न कभी तो उसने जाना ही था
कब तक झेल सकता है आदमी धरती का भार
धरती आदमी से बहुत-बहुत बड़ी और भारी है
शाम अँधेरे अक्सर आती है उसकी याद।
तुम कैसे इस शहर में हो
तुम कैसे इस शहर में हो
तुम्हारी बातें किन ग्रहों से आई हैं समझ नहीं पा रहा
हो सकता है ये अतीत की हों या भविष्य की भी हो सकती हैं
तुम ऐसे समय की हो जब दुनिया में मान्यताएँ नहीं होती थीं
तुम्हारी आँखें छोटी हैं रंगीन नहीं हैं
कोई सुरमा भी नहीं लगा है
तुम्हारे होंठों पर शाम का हल्का अँधेरा है
जो बार बार मेरी नज़र खींच रहा है
और मैं देखता हूँ तुम्हारी बातों से बनता है
एक ऐसा संसार जो अँधेरे से निकलने के लिए छटपटा रहा है
तुम्हारे गाल थोड़े लाल हैं
थोड़े फूले से बच्चों जैसे
और बातें करते हुए उनमें
कहीं कहीं घाटी सी बनती है
और तुम्हें अंदाज़ा नहीं है कि
कि तुम्हारी बातों का सौंदर्य खींचता है
मुझे तुम्हारी आँखों से गालों तक
क्या मैं ही हूँ जो किसी और ग्रह से आया हूँ
और नहीं दिखता तुम्हें मेरा यूँ फिसलना
एक दिन तुम कहोगी कि अब और नहीं योजनाएँ
एक दिन तुम कहोगी कि कुछ करने का वक्त आ गया है
एक दिन तुम लिख डालोगी पूरा पूरा उपन्यास
एक दिन तुम निकल आओगी मृत्यु से जीवन की ओर
फिलहाल मेरा ध्यान तुम्हारे होंठों पर ही है
तुम्हारी बातों के साथ-साथ पहुँच रही है मुझ तक
तुम्हारी छटपटाहट
तुम्हें जानने के बाद से मेरे मन में
कहीं गूँज रही है आवाज़ कि
इस अँधेरे से हम निकलेंगे साथ-साथ
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