Thursday, January 24, 2013
आह जंक्शन !
जंक्शन
-आलोक धन्वा
आह जंक्शन !
रेलें जहाँ देर तक
रुकती
हैं
बाक़ी सफ़र के लिए पानी लेती हैं
मैं ढूँढता हूँ वहाँ
अपने पुराने हमसफ़र.
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