अल-हल्लाज* के लिए एक शोकगीत
तुम्हारा हरा, ज़हरीला पंख,
तुम्हारा पंख जिस की नसें भरी हुई हैं लपटों से
और बग़दाद से उठता सितारा,
यह है हमारा इतिहास और अवश्यम्भावी पुनरुज्जीवन
हमारी अपनी धरती पर – बार-बार होती हमारी मृत्युओं में.
समय पसरा रहता था तुम्हारे हाथों में.
और तुम्हारी आँखों की आग
फैलती हुई, आसमान तक पहुँच रही है.
अरे, कविता और नवजीवन से लदे
बग़दाद से उठ रहे सितारे
ओ ज़हरीले हरे पंख.
पुनरुज्जीवन की इस धरती पर
मृत्यु और बर्फ की गूंजों के साथ
दूर से आने वालों के लिए
कुछ नहीं बचा है.
कुछ नहीं बचा सिवा तुम्हारे और उपस्थिति के.
अरे तुम, फेंकी गयी त्वचाओं की धरती पर
गैलीलियाई तूफ़ान की भाषा.
तुम, जो कवि थे जड़ों और रहस्यों के.
(मंसूर
अल-हल्लाज : नवीं-दसवीं शताब्दी के एक रहस्यवादी, क्रांतिकारी लेखक और
सूफ़ीवाद के अध्येता थे. उन्हें सबसे अधिक उनकी कविताओं के लिए जाना जाता है. उन
पर विधर्मी होने का आरोप लगाया गया और मौत की सज़ा दी गयी.)
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