Thursday, January 3, 2013

क्या तुम्हारी आँखों ने कभी जाना है धरती एक है बस - अदूनिस की कविता - २



धरती

कितनी दफ़ा कह चुके हो तुम :
“एक दूसरी मातृभूमि है मेरे पास,”
और आंसुओं से तर हो जाती हैं तुम्हारी आँखें,
और तुम्हारी हथेलियाँ उसके नज़दीकी इलाक़ों
की बिजलियों से भर जाती हैं.

क्या तुम्हारी आँखों ने कभी जाना है
धरती पहचान लेती है
हरेक गुजरने वाले को,
बचा कर रखना अपने क़दमों को :
चाहे वे रो रहे हों या प्रसन्न हों,
यहाँ, गा रहे थे तुम, या वहां?

क्या तुम्हारी आँखों ने कभी जाना है
धरती एक है बस :
जिसके थन और अंतड़ियाँ सुखाए जा चुके?

क्या तुम्हारी आँखों ने जान लिया है
कि धरती परवाह नहीं करती
अस्वीकार के अनुष्ठानों की?

क्या तुम्हारी आँखों ने समझ लिया है
तुम ही तो हो वह धरती?

2 comments:

Arun sathi said...

adbhut...

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर...

अनु