१.
छितरी हुई ताकतों का मेरा सिद्धांत हर रोज और पक्का होता जाता है. जैसा कि
एंडरसन की परीकथा में होता है, ताक़त किसी आईने की तरह चूर चूर होती है और उसकी
किरचें तकरीबन हरेक दिल में जा घुंपती हैं. शिक्षक – शिष्य, चिकित्सक – रोगी,
सेल्स क्लर्क – ग्राहक: ये सारे सम्बन्ध ताक़त और निर्भरता की एक सतह पर आकार लेते
हैं. यह पूरे सिस्टम की एक बीमारी है. यहाँ तक कि बरामदे में सफाई कर रही औरत भी
किरायेदारों पर चीखती है जो अपनी बाल्कनियों से कूड़ा फेंकते हैं. जबकि वह बरामदे
में मौजूद एक पेड़ से गिरी हुईं कोंपलें भर हैं.
“अपने
कुत्ते की गंदगी साफ़ करो.” वह मुझ पर चिल्लाती है.
इस से कोई फर्क नहीं पड़ता
कि मेरे पास कुत्ता है ही नहीं. उस औरत के पास ताकत का अपना टुकड़ा है – चिल्लाने
का अधिकार.
२.
कविता में सादगी खुद विनम्रता होती है. हम जानते हैं कि हम जो कहना चाहते हैं हमसे ज़्यादा होता है; हो सकता है वह अभिव्यक्ति से भी परे हो. हम केवल साधारण संकेत कर सकते हैं, दीनहीन, हकलाते हुए वाक्य बना सकते हैं. यहाँ तक कि प्रश्न भी शब्दों के महान आडम्बर की तरफ झुकने लगते हैं.
कविता कोई “कल्पना का कारनामा” नहीं होती. अभिमान की मदद से पाप करती है कल्पना; और उसे रिश्वत दी जा सकती है. वह नखरालू और अपने आप को लेकर निश्चित होती है. वह सृष्टि की तरफ इशारा करती है, मगर सिर्फ उतना ही – बस एक इशारा, एक कब्ज़ा. कल्पना कविता की फ्लर्ट है.
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