Tuesday, April 9, 2013

उत्तर पूर्व की कविताएं - ५



बिक्री के लिए

-पाल लिंगदोह

(खासी कवि पाल लिंगदोह का जन्म १९७२ में शिलोंग में हुआ था. उनका एक द्विभाषिक काव्य-संग्रह प्रकाशित है. वे का खुन हाइनीत्रिप नेशनल अवेकनिंग मूवमेंट के संस्थापक अध्यक्ष रहे. यह पार्टी खासी स्टूडेंट्स यूनियन के समर्थन से बनी. अनुवाद गोपाल प्रधान का है.)

बिकाऊ है
यह गीली, रमणीय भूमि अपनी समस्त लाभकारी योग्यता के साथ
हमारे बेशकीमत खनिज औषधीय वृक्ष दुर्लभ ऑर्किड
वृक्ष भूमि और जल
सब कुछ और बहुत भी कुछ.
बिकाऊ हैं
इस धरती की ही तरह सुन्दर, वर्णीय युवतियां
मैदानी लोगों को वर बनाना शोभता है हमें
वैसे तो समुन्दर पार के पुरुष भी अपनाने में हर्ज नहीं
बस थोड़ी योग्यता हो
(विवाहित, विधर्मी या विजातीय सब स्वीकार हैं)
तोंद जिन्हें हो
या हाल फिलहाल निकलने की सम्भावना हो
वे ही आवेदन करें.
बिकाऊ हैं
कंकड़ी जैसे आदिम जनजातीय मूल
इन्हीं से प्रगति का रथ आगे बढ़ता है
हम तो हम से दूर हुए जाते हैं
हम ही हम से लगातार लज्जित हैं.
बिकाऊ हैं
अभिमान, मूल्य और काम करने की आदत
लज्जा बोध और अंतरात्मा
संपर्क सूत्र चाहिए?
ज़रूरत नहीं
हमारे दलाल सर्वत्र विराजमान हैं
सड़क पर आप संपर्क कर लें उनसे खुले खजाने. 

1 comment:

अजेय said...

ज़रूरी विचारोत्तेजक कविता .