Thursday, June 20, 2013

उत्तराखंड आपदा – कुमाऊँ की कोई रपट क्यों नहीं आ रही?



मेरे एक मित्र कुमाऊँ के सीमान्त पिथौरागढ़ के धारचूला शहर के नज़दीक बन रही एन एच पी सी की विराट जलविद्युत परियोजना में काम करते हैं. आजकल उनका परिवार गर्मियों की छुट्टियाँ मनाने वहीं गया हुआ है.

धारचूला के आसपास के इलाके से मेरा बेहद पुराना और रागात्मक सम्बन्ध रहा है, सो जब वहां से बादल फटने वगैरह की छिटपुट ख़बरें आना शुरू हुईं तो मेरा चिंतित होना स्वाभाविक था. परसों रात से लगातार अपने मित्र को फ़ोन लगाने की असफल कोशिशों के बाद अंततः आज उनसे बात हो सकी. धारचूला के इलाके में ऐसा अकल्पनीय विध्वंस हुआ है जिसकी सही सही खबर आने में अभी संभवतः वक्त लगेगा.  

फिलहाल मेरे मित्र ने जो बताया उसका सार इस तरह से है –

२०० मेगावाट से ज़्यादा क्षमता वाला एन एच पी सी की विराट जलविद्युत परियोजना का मुख्य प्लांट बुरी तरह ध्वस्त हो गया है और उसे कामचलाऊ स्थिति तक में लाने के लिए कम से कम छः माह लगेंगे.

सोबला समेत कुछेक गाँवों का कोई नाम-ओ-निशान नहीं बचा है.

धारचूला से जौलजीबी जाने वाली सड़क कुछ जगतों पर तीन सौ से चार सौ मीटर तक पूरी बह गयी है. काली नदी के इस तरफ भारतीय सीमा में धारचूला है तो दूसरी तरफ़ नेपाल का दार्चुला. नेपाल के इलाके में हुई हानि भयानक नज़र आ रही है.

एन एच पी सी की विराट जलविद्युत परियोजना में काम करने वाले इंजीनियरों वगैरह की कॉलोनी के चार ब्लॉक पूरी तरह बह गए. करोड़ों के जान माल का नुकसान हुआ है.

सबसे हैबतनाक हादसा छिपलाकेदार नामक स्थान के नज़दीक हुआ है जिसमें अचानक बादल फटने की कुछेक घटनाओं के कारण दो से तीन दर्जन लोगों की मौत की पुष्टि प्रत्यक्षदर्शी लगातार कर रहे हैं. ध्यान रहे, ऐतिहासिक त्रासदी के गवाह रही मालपा नामक जगह इसी इलाके के निचले हिस्सों में अवस्थित है और ऊंचाई पर के गाँवों की रिपोर्ट्स अभी आना बाकी हैं.

स्थानीय अखबारों तक में ढंग की रिपोर्टिंग नहीं हुई है, टीवी चैनलों की क्या बात की जाए. तमाम सड़कें टूटी हुई हैं, संचार की व्यवस्था ठप्प है  ... 

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