१९९१ में
उत्तरकाशी में आए भूकंप के बाद हुए राहत कार्यों में जो लूटखसोट मची थी उसका एक
वीभत्स रूप मैंने घटना के तीन माह बाद उत्तरकाशी से कोई चारेक सौ किलोमीटर दूर
अपने शहर हल्द्वानी में देखा था – ऑटो में बैठे दो-तीन नवयुवक उत्तरकाशी के भूकंप
वाले मज़बूत टेंट तीन-तीन सौ रूपये में बेच रहे थे और उनका यह धंधा अच्छा चल रहा था.
ये तम्बू किसी यूरोपीय देश (संभवतः नॉर्वे) ने भूकम्प पीड़ितों की राहत के लिए भेजे
थे.
आज के एक स्थानीय
अखबार में एक खबर छपी है कि गढवाल के हालिया प्राकृतिक हादसे के बाद जहां-तहां
फंसे भूखे-प्यासे लोगों की तकलीफों को देखकर इस देश की कतिपय सदाशय धर्मपारायण
आत्माओं के मन में अचानक इतनी मानवता और सहानुभूति उमड़ी कि उन्होंने भूख से तड़पते
बच्चों के लिए भोजन खोज रहे माता-पिताओं को ग्लूकोज बिस्किट का पांच रुपये का
पैकेट सौ-सौ रुपयों में बेचना शुरू कर दिया है. लोगों ने आलू और प्याज़ का भंडारण
करना भी शुरू कर दिया है – यह समाचार भी इसी अखबार में छपा है.
केन्द्र सरकार
ने जैसे ही उत्तराखंड सरकार को एक हजार करोड़ रूपये की अंतरिम राहत की घोषणा की और मुख्यमंत्री
ने इस कृपा का टीवी पर आभार व्यक्त किया, मय एक फोकट हैलीकॉप्टर के इस प्रोजेक्ट
राहत मैनेजमेंट का ज़िम्मा सम्हालने में सूबे के योग्य मुख्यमंत्री के और भी योग्य कुंवर
ने ज़्यादा वक़्त नहीं लगाया. अब वे बहैसियत सर्वेसर्वा अधिकारियों को निर्देशित कर
रहे हैं कि खबरदार एक भी पैसा बर्बाद गया तो ...
... आगे आगे
देखिये
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