Tuesday, June 25, 2013

कलापारखी बांचै उसको गाना राजकपूरे का


संसद जाय मदारी बैठा सत्यानास जमूरे का

-संजय चतुर्वेदी

सहमत लोगों में मुन्सी जी अजब खेल है नूरे का
सोभित कर नवनीत लिए सो निकसत राग हजूरे का.

मीरा सूर नजीर कबीरा सारे ढक्कन होत भए
अब तो भैया कलचर पै भी है हमला लंगूरे का

दरसन था सैलिंदर का तहरीर उतारी संकर ने
कलापारखी बांचै उसको गाना राजकपूरे का

आदम सेना सिवसेना पै चढ़ जा बेटा फरमाई
दिल्ली की बसंतसेनाएं रस पी के अंगूरे का

मरी बिचारी जनता उल्लू सीधा भया मसीहा का
संसद जाय मदारी बैठा सत्यानास जमूरे का

चढ़ी चासनी कल्चर की तौ लगे हाथ परमारथ भी
निरंकार है प्रगतिशीलता अगमपंथ कोई सूरे का

हाथ लंगोटी आई सारे भूत भाग के निकस गए
मारुती मिली क्रान्ति का सपना हो गया धूरमधूरे का

4 comments:

आर. अनुराधा said...

शानदार, लाजवाब!

Rahul Gaur said...

बहुत करारी भाषा. और ग़ज़ब के तेवर...
संजय जी की कविताओं का कोई संग्रह कहां से मिल सकता है, अशोक जी?

Rahul Gaur said...

करारी भाषा, और ग़ज़ब के तेवर..
संजय जी की कविताओं का संग्रह कहां मिल पायेगा, अशोक जी?

asmurari said...

भैया ई तो गजब किये हो!! का कहूँ..