अफ्रीकी लोक-कथाएँ : २
अक्लमंद सियार की कहानी
“सुनो, सुनो, सुनो, मेरे बच्चो,” एक शाम गोगो
ने बोलना शुरू किया. “जानते हो न, अक्लमंद होना बहुत ज़रूरी होता है! याद नहीं
अक्लमंदी के कारण कितनी दफ़ा नोग्वाजा मरते मरते बचा है!”
“सियार भी बहुत अक्लमंद होता है, हैं न गोगो?
नन्हे सीफो ने पूछा. सीफो को अपने दूसरे नाम म्पुंगगुशे (यानी सियार) पर बड़ा
अभिमान था. दरअसल गोगो ने ही बचपन में सीफो को प्यार से म्पुंगगुशे कहना शुरू किया
था क्योंकि जब वह छोटा बच्चा था रोते हुए सियार की सी दहाडें मारता रोया करता था.
जबकि सीफो समझता था कि उसे यह नाम सियार की तरह अक्लमंद और चपल होने के कारण मिला
था.
गोगो ने हंसते हुए अपने पैरों पर बैठे बच्चे को
देखा, “हाँ, मेरे बच्चे! तुम सही हो! सियार बहुत चालाक होता है. कभी कभी तो कुछ
ज़्यादा ही.”
“मुझे याद है कैसे उसने जाबू चरवाहे को बचाने
के लिए बुबेशी को वापस जाल में पहुंचा दिया था. मुझे सियार के बारे में एक कहानी
और सुनाओ न!” सीफो ने निवेदन किया.
“हां गोगो,” उसके बाकी के नाती-पोतों ने सुर
सुर में मिलाया. “सुनाओ न ....”
“ठीक है बच्चो. लेकिन सुन कर कहानी से सीख ज़रूर
लेना!” पेड़ के ठूंठ पर अपने गोलमटोल शरीर को अच्छी तरह व्यवस्थित करने के बाद गोगो
ने कहानी शुरू की.
बहुत दिन पहले की बात है. एक सियार एक संकरे और
चट्टानी रास्ते से जा रहा था. किसी अजनबी गंध को सूंघने की अपनी आदत के चलते वह
अपनी नाक ज़मीन से तकरीबन चिपकाए हुए आगे बढ़ रहा था. “पता नहीं अगला भोजन कब मिलने
वाला है मुझे ...” उसके सोचा, अलबत्ता यह असंभव जैसा ही था कि उसे इस दोपहरी में
कोई चूहा भी शिकार के वास्ते मिल पाता. हाँ हो सकता था उसे एकाध छिपकलियाँ मिल
जातीं.
अचानक उसे रास्ते पर आगे कुछ हलचल का सा आभास
हुआ. “अरे! नहीं!” कहते हुए सियार ने कराह सी निकाली और अपने जहां था, पत्थर बन कर
वहीं ठहर गया. शेर उसी की तरफ़ आ रहा था. यह समझते ही कि अब शेर से बच सकना संभव
नहीं है, डर के मारे सियार की घिग्घी बंध गयी. महान शेर बुबेशी के साथ वह पहले ही
इतनी चालाकियां कर चुका था. उसे पक्का मालूम था कि बदला लेने के लिए शेर हर हाल
में इस मौके का फायदा उठाएगा. पलक झपकते ही सियार के दिमाग में एक तरकीब आई.
“बचाओ! बचाओ!” सियार चिल्लाया. चट्टानी रास्ते
पर दुबक कर खड़ा वह ऊपर चट्टानों की तरफ़ देखने लगा.
अचरज में शेर ठिठक कर खड़ा हो गया.
“बचाओ!” अपने सीने के बीचोबीच उठ रहे दर्द को
ज़बान देता हुआ सियार विलाप सा करने लगा. सियार ने नज़रें उठाकर बुबेशी को देखा. “अरे
वाह क्या किस्मत है! बचाओ! खोने के लिए ज़रा भी वक़्त नहीं है हमारे पास! ऊपर उन
चट्टानों को देखते हो? वे बस गिरने ही वाली हैं! हम दोनों उनके नीचे कुचल कर मारे
जाएंगे!!! ओ पराक्रमी शेर, कुछ करो! हमें बचाओ!” सियार ने और भी नीचे दुबकते हुए पंजों
से अपना सिर ढांप लिया.
बेहद सावधान होकर शेर ने ऊपर देखा. इसके पहले
कि वह कुछ सोच पाटा, सियार उस से मिन्नतें करने लगा था कि वह अपनी सारी ताकत का
इस्तेमाल करते हुए ऊपर से झुकी हुई चट्टान को थामे रहे. सो शेर ने अपने गठीले
कन्धों को चट्टान से टिकाया और जोर लगाया.
“धन्यवाद, धन्यवाद, महान सम्राट!” सियार ने एक
तीखी कराह निकाली. “मैं जल्दी से लकड़ी के उस कुंदे को यहाँ लाकर चट्टान के नीचे
लगा देता हूँ. इस तरह हम दोनों बच जाएंगे!” इतना कहकर सियार नौ दो ग्यारह हो गया.
स्थिर चट्टान के बोझ तले जोर लगाता शेर अकेला रह
गाया. हम कभी नहीं जान सकेंगे कि वह वहाँ कब तक खड़ा रहा जब उसे समझ में आया होगा
कि यह भी सियार की एक चाल थी. लेकिन हमें इतना मालूम है कि अपनी अक्ल के दम पर
सियार लम्बे समय तक जीवित रहा.
1 comment:
वाह बहुत ही सुन्दर कहानी, समझदार सियार।
Post a Comment