ज़ेब्रा
ज़ेब्रा
एक विरल पशु है, वक़्त के साथ यह और भी विरल होता जाता है, कोई ताज्जुब नहीं कि हर
साल यह पिछले साल से भी कम दिखाई देता है, यानी हरदम दुर्लभ से दुर्लभ-तर होने को
अग्रसर रहता है, कि ज़ेब्रे सामान्य घोड़ों में तब्दील होते जा रहे हैं, या तो भूरे
या काले, ज़ेब्रे हरदम कम से कमतर होते जा रहे हैं, और वह दिन करीब है जब धारीदार
जर्सियों का कोई नाम लेना वाला नहीं रह जाएगा, अभी ये नौबत है कि बाज़ार में
धारीदार जर्सियाँ अक्सर कहीं ढूंढे नहीं मिलतीं, किसी कीमत पर भी कोई देने को राजी
नहीं, एक वरिष्ठ मादा ज़ेब्रा अपनी बेटियों के साथ दूकान में दाखिल होती है और शॉप
असिस्टेंट से कहती है मेरी दोनों नन्हीं बेटियों के लिए दो जर्सियां चाहिय्र,
लेकिन शॉप असिस्टेंट पट से कहती है, सॉरी मैडम, धारीदार जर्सियां स्टॉक में नहीं
हैं, सब निकल गईं, आप एक-दो हफ्ते बाद पता कर लेना तब तक शायद नई सप्लाई आ जाए, पर
कोई नई सप्लाई नहीं आती, अब कोई कब तक इंतज़ार करे और बार बार पूछकर निराश होता
रहे, उधर बेटियाँ हैं कि बड़ी होती जा रही हैं, वे कब तक यों ही बिना कुछ पहने
घूमती रहेंगी, लिहाजा थक-हार कर एक रोज वे साधारण लंबी बाहों वाली काली या भूरी
जर्सियां खरीद लेती हैं, वैसी ही काली या भूरी साधारण जैर्सियाँ जैसी घोड़े-घोडियां
पहना करते हैं, लिहाजा कोई आश्चर्य नहीं कि ज़ेब्रा इतना दुर्लभ पशु होता जा रहा
है.
(अनुवाद - असद ज़ैदी, 'जलसा' - ३ से साभार)
1 comment:
हम सब उनकी तरह बनना चाहते हैं, उनकी ही खाल पहनकर।
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