तीसरा हेम चंद्र पांडे स्मृति
व्याख्यान
विषय- कॉरपोरेट लूट, तबाही और पत्रकारिता के उत्तरदायित्व
बीज वक्तव्य- आनंद स्वरूप वर्मा
2 जुलाई 2013
समय- सायं 5 बजे
स्थान- सभागार, सेवॉय होटल,
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
आइये हेम चंद्र
पांडे को याद करें! वे एक्टिविस्ट पत्रकारों की उस परंपरा में शामिल
हैं जो जॉन रीड, एडगर स्नो, जैक बाल्डेन, हरीश मुखर्जी, ब्रह्मबांधब उपाध्याय से
लेकर सरोज दत्त तक फैली हुई है. इस परंपरा में वे अनगिनत गुमनाम पत्रकार भी शुमार
हैं जो निर्भीकता और ईमानदारी के साथ देश के दूरस्थ इलाकों से रिपोर्टिंग करते
हैं.
-सुमंतो
बनर्जी
हेम चन्द्र पांडे का बलिदान बरबस हमें पहाड़ की
पत्रकारिता के पुरोधाओं दिवंगत भैरव दत्त धूलिया, आचार्य गोपेश्वर कोठियाल की याद
दिलाता है और बद्री दत्त पांडे, विक्टर मोहन जोशी जैसों द्वारा स्थापित किये गए
जनपक्षीय पत्रकारिता के मापदंडों की परंपरा को आगे बढ़ाता दीखता है. यह सभी महज
पत्रकार ही नहीं थे बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी बराबरी के साझेदार थे.
-सुभाष
गाताड़े
बहुतेरे
पत्रकार कभी-कभार जन आंदोलनों की खबरें भी देते हैं और इस तरह वे अपने पेशेगत कौशल
को भी मांजते हैं. हेम इन मामलों में अलग थे कि वे इस पेशे को अपने विचारों से
एकाकार कर चुके थे। यही चीज उन्हें विलक्षण बनाती है. हेम जन-सरोकारों पर यदा-कदा लिखने
वाले अतिथि पत्रकार नहीं थे.
-गौतम
नवलखा
हेम चंद्र पांडे की शहादत को इस बार तीन साल
पूरे होने जा रहे हैं. 2 जुलाई 2010 को पुलिस ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(माओवादी) के प्रवक्ता आज़ाद के साथ आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद ज़िले में फ़र्जी
मुठभेड़ दिखाकर उनकी हत्या कर दी थी. तब हेम की उम्र महज बत्तीस साल थी. इतने कम
अरसे में ही उन्होंने परिवर्तनकामी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित होकर आम जनता के
पक्ष में अपनी लेखनी चलाई. उनकी हत्या ने इंसाफ़पसंद लोगों को सकते में डाल दिया.
यही वजह है कि देश और दुनिया भर के मानवाधिकार और पत्रकार संगठनों ने हत्याकांड की
निंदा की.
हेम की की मौत के बाद उनके कुछ पुराने दोस्तों
और प्रगतिशील पत्रकारों ने मिलकर हेम चंद्र पांडे मेमोरियल कमेटी बनाई थी. कमेटी
ने हेम के लेखों को संकलित कर विचारधारा वाला पत्रकार हेम चंद्र पांडे नाम से एक किताब प्रकाशित
की और उनके शहादत दिवस पर हर साल हेम चंद्र पांडे मेमोरियल लेक्चर करवाने का भी
फ़ैसला लिया. पहला हेम स्मृति व्याख्यान मशहूर पत्रकार और इन द वेक ऑफ़
नक्सलबाड़ी जैसी चर्चित किताब के लेखक सुमंतो बनर्जी ने दिया. उन्होंने पत्रकारिता
और एक्टिविज्म के रिश्तों के बारे में बात करते हुए ज़ोर दिया कि जन पक्षधरता के
लिए पत्रकार का ऐक्टिविस्ट होना भी ज़रूरी है. दूसरे स्मृति व्याख्यान में मशहूर मानवाधिकार
कार्यकर्ता और डेज एंड नाइट्स इन द हार्टलैंड ऑफ़ रिबेलियन के लेखक गौतम
नवलखा ने भारतीय राज्य, जन आंदोलनों और पत्रकारिता के रिश्तों के बारे में बात की
थी. ये दोनों स्मृति व्याख्यान दिल्ली में किए गए थे. तीसरा स्मृति व्याख्यान हम
हेम के गृह राज्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा शहर में करवाने जा रहे हैं. वरिष्ठ
वामपंथी पत्रकार और तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने तीसरा व्याख्यान
देने पर अपने सहमति दी है. वे कारपोरेट लूट, तबाही और पत्रकारिता के
उत्तरदायित्वों पर बात करेंगे. उत्तराखंड में हालिया हुई तबाही भी इस
विषय पर गंभीर विमर्श की मांग करती है. राज्य में पर्यटन और जलविद्युत परियोजनाओं से
मुनाफा कमाने के लिए सरकारों ने जिस तरह से लूटतंत्र विकसित किया है, यह तबाही उसी
का परिणाम है. अगर प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए कॉरपोरेट के साथ मिलकर
सरकारें विकास के नाम पर विनाश के ऐसे ही मॉडल को आगे बढ़ाती रहीं तो आने वाले
दिनों में इससे भी बद्तर हालात के सामने आऩे का ख़तरा है.
कॉरपोरेट और सरकारों
के स्वार्थी गठजोड़ का शिकार अकेला उत्तराखंड ही नहीं है बल्कि देश के बाक़ी
हिस्सों में भी ये जन विरोधी ताक़तें प्राकृतिक संसाधनों की बेतहाशा लूट और जनता
के दमन में सक्रिय हैं. ऐसी स्थितियों में हमारे वक़्त की पत्रकारिता कॉरपोरेट
साजिशों के बाहर निकल कर नहीं सोच पा रही है. इस बार के व्याख्यान में मुख्य वक्ता
आनंद स्वरूप वर्मा इस विषय की गहराई से पड़ताल करेंगे. वे लंबे अरसे से देश में
कॉरपोरेट पत्रकारिता का विकल्प खड़ा करने की कोशिशों से जुड़े रहे हैं. उनकी बातों
पर विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए उत्तराखंड और देश के बाक़ी हिस्सों से भी पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और
कॉरपोरेट लूट के ख़िलाफ़ खड़े लोगों का हम अल्मोड़ा में इंतज़ार करेंगे. आपकी मौज़ूदगी
झूठ और फ़रेब के ख़िलाफ़ हमारी आवाज़ को और ज़्यादा ऊंचा स्वर देगी.
(हेम चंद्र पांडे मेमोरियल कमेटी के लिए रोहित
जोशी की ओर से जारी)
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