Tuesday, July 2, 2013

क्यों न बोल लिया जाय एक सच इस रात के सूने साहस में



रात ढलने लगी है

-संजय चतुर्वेदी

समारोह तो शाम को संपन्न हो लिया
हो लिए सारे अभिनन्दन
घोषणाएं, भर्त्सनाएं सब हो चुकीं
तस्वीरें गईं, बयान छप चुके
बाहरी लोग सब जा चुके कबके
अब तो बोतल भी हो चुकी ख़त्म
और सब आपस के ही बचे हैं सब अधमरे
क्यों न बोल लिया जाय एक सच इस रात के सूने साहस में
इसलिए महान नहीं हैं हमारे इधर के महाकवि
कि उन्होंने बड़ी कविताएँ लिखीं
बल्कि इसलिए
कि वे साहित्य और संस्कृति के शासक तंत्र में बैठकर
जनता को लम्बे समय तक बेवकूफ बना सके
और दिलफ़रेब मेकअप भी नहीं उतरने दिया

ज़रा दीदे खोलकर देख
इन सिरमौर कवियों से बेहतर बीस कवि
सीमापुरी के मुशायरे में हर साल मिलते हैं

('कल के लिए' के अक्तूबर २००४- मार्च २००५ अंक में प्रकाशित) 


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