[पहले आपदा फिर राहत – इन दोनों
के प्रबंधन में हमारी सरकारें किस कदर विफल रही हैं, इसे रेखांकित करती मौके से यह
रपट भाकपा (माले) पिथौरागढ़ जिले के सचिव जगत मर्तोलिया के फेसबुक स्टेटस से साभार ली गयी है]
-जगत मर्तोलिया
धारचूला के बाजार में आज से चाय मिलनी बन्द हो गयी, दो-चार दिन में खाना भी मिलना शायद बन्द हो जायेगा. आपदा की त्रासदी से कराह रहा पिथौरागढ़ जिले का धारचूला व मुनस्यारी का इलाका सबसे न्याय की उम्मीद कर रहा है. आपदा की त्रासदी आज बीसवां दिन है. मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत का दौरा हो चुका है. सांसद व विधायक कर्इ बार इलाके का दौरा कर चुके हैं. आज पता चला कि आपदा मंत्री धारचूला में हैं.
1977 में तवाघाट में आयी भीषण आपदा की त्रासदी के दौरान भी धारचूला का इलाका पिथौरागढ़ से केवल एक दिन सड़क मार्ग से कटा रहा. धारचूला में अस्सी साल से अधिक उम्र के वृद्धों की जुबान पर यह बात है कि पहली बार बीस दिन से सड़क बन्द होने के बाद उपजी सिथतियों का वह सामना कर रहे हैंं. उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद यहां की सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही थी कि वह पहला राज्य है जिसने आपदा के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया.
आपदा प्रबन्धन के नाम पर होने वाली लूट खसोट की लम्बी फेहरिस्त है. यूनेस्को से लेकर तमाम विदेशी वित्तीय ऐजेन्सीज द्वारा मिलने वाली करोड़ों की राशि आपदा प्रबन्धन के नाम पर उत्तराखण्ड में खपार्इ जा रही है. उत्तराखण्ड में कार्यशाला, प्रशिक्षण, आपदा से पूर्व तथा आपदा के बाद निपटने की बात पर खर्च तो करोड़ों होते हैं लेकिन उनसे क्या निकल रहा है. यह इस बार जमीन पर धारचूला व मुनस्यारी में दिखा है. बात यहां से शुरू करते हैं हैलीकाप्टरों से जो राशन के पैकेट भेजे गये उनकी पैंकिंग तक यहां के कर्मचारियों को नहीं आती है. जिस कारण फेंके गये राशन के पैकेट आसमान में ही फट गये और आपदा पीडि़तों को चावल-आटा केवल चाटने को मिला.
इससे स्पष्ट हो जाता है कि आपका सरकारी प्रबन्धन कितना कुशल है. इस बीच हम धारचूला में हैं आपदा के बाद जब 21 जून को यहां पहली बार आये थे तो निगालपानी, गोठी के निकट मोटर मार्ग में पैदल रास्ता बचा था. इस बार फिर 3 जुलार्इ को जब फिर धारचूला पहुंचे तो इन दोनों जगहों पर पैदल चलने के लिए रास्ता मात्र तक नहीं था. सीमा सड़क संगठन के इंजीनियर मोटर मार्ग नहीं खोल पाये. इस पर तो बात होनी चाहिए लेकिन पैदल रास्ता भी बचा नहीं पाये यह बात तो शर्म की है. आज 20 दिन बीत रहे हैं केवल दो स्थानों में सड़क खोली गयी है. कहने को तो यह राष्ट्रीय राजमार्ग है. इस सड़क के बन्द होने से धारचूला बाजार का नजारा कुछ इस तरह है कि राशन की दुकानों के बारदाने जो सामानों से भरे थे, खाली हो चुके हैं. गोदाम सूने हो गये हैं. एक राशन के दुकानदार ने बताया कि आज तक जो माल नहीं बिका था वह भी इस बार बिक गया. सब्जी खाना तो यहां के लोगों के लिए अब एक स्वप्न हो गया है. 19 रूपये किलो चावल 100 रूपये में भी नहीं मिल रहा है.
यहां से बलुवाकोट कुछ पैदल-कुछ जीप में जाकर राशनों के कट्टे अपने पीठ में लादकर ला रहे हैं और सरकार को आर्इना दिखा रहे हैं कि इस आपदा से उपजी भूख से निपटने के लिए उसके पास कोर्इ प्रबन्धन नहीं है. जो जनता कर रही है, वह भी सरकार नहीं कर सकती है. जौलजीबी से धारचूला के राष्ट्रीय राजमार्ग में कालिका से आगे मार्ग बन्द है. यहां से आगे के पैंतीस से अधिक ग्राम पंचायतें और तीस हजार की आबादी चावल के दाने के लिए तरस रही है. धारचूला बाजार से आगे व्यांस, चौंदास, दारमा घाटी, तल्ला दारमा घाटी, खुमती क्षेत्र, गलाती क्षेत्र, रांथी से लेकर खेत तक का इलाका राशन के एक-एक दाने के लिए मोहताज है. धारचूला व मुनस्यारी के आपदा पीडि़त ही नहीं बलिक अब साठ हजार की जनसंख्या को दाल, आटा, चावल की आवश्यकता है. इस पर सरकार का ध्यान अभी तक तो कतर्इ नहीं है.
धारचूला से आगे के और धारचूला तक जोड़ने वाले मोटर मार्ग कब खुलेंगे इसका जवाब सीमा सड़क संगठन दे नहीं पा रहा है. चीन तथा नेपाल सीमा के बार्डर का यह हाल है, यहां सुरक्षा तो एक सवाल है ही, क्या इस सिस्टम पर हम कोर्इ भरोसा कर सकते हैं यह चिन्ता भी एक बात है. लेकिन हम उन हजारों लोगों की बात कर रहे हैं, जिनके घर में आटा चावल अब खतम होने को है. इस पूरे प्रक्रिया में कहीं भी सरकार तथा प्रशासन के कामकाज में यह बात नहीं है कि वह राशन आम लोगों तक पहुंचाने का कोर्इ विकल्प दे पाया है. सोर्इ हुर्इ सरकार, जन प्रतिनिधियों के पीछे भाग रही नौकरशाही क्या इस इलाके के लोगों को एकमात्र राशन दे पायेगी. आज अखबार में खबर है कि जौलजीबी से मदकोट का मोटरमार्ग दो माह में खुलेगा. गोरीछाल घाटी के सैकड़ों गांवों की बीस हजार की आबादी का भी राशन खत्म होने को है. इनके बारे में क्या बहुगुणा सरकार ने कुछ सोचा है? यही उत्तर मिलेगा कि -नहीं.
मुनस्यारी के जोहार तथा रालम घाटी में लोग आज भी फंसे हुए हैं. कन्ज्योति के 35 आपदा पीडि़तों को आज तक नहीं निकाला गया है. यही हाल दारमा घाटी का भी है. यहां अधिकारी कर्मचारी बहुत हैं लेकिन उनके पास इस आपदा से निपटने का कोर्इ सरकारी दिशा तक नहीं है. धौलीगंगा जल विधुत परियोजना के छिरकिला बांध पर भी लोगों के सवाल हैं, नेपाल ने तो भारत पर यह आरोप भी लगा दिया है कि बांध का पानी एकसाथ खुलने से नेपाल को भारी नुकसान हो गया है. भारतीय राजदूत के ना-नुकुर के बाद यह सवाल लोगों की जुबां पर है कि 15 जून की रात्रि से ही बारिश शुरू हो गयी थी तो क्यों 17 जून को क्यों बारिश का पानी एक साथ खोला गया. ऐलागाड़ का कस्बा इसलिए बह गया कि टनल से जो अतिरिक्त पानी छोड़ा गया उसे ऐलागाड़ गधेरे के पानी ने पूरे वेग से रोक दिया और उसने ऐलागाड़ के कस्बे का नामोनिशान मिटा दिया. एनएचपीसी यह कह चुकी है कब उसकी परियोजना शुरू होगी वह कह नहीं सकती. करोड़ों का नुकसान अलग से है.
पहाड़ों में परियोजना तथा बांध के समर्थक इस सवाल पर भी जवाब देंगें. मुख्यमंत्री ने सोबला, न्यू, कन्च्यौति, खिम के 171 परिवारों को यहां राजकीय इण्टर कालेज धारचूला में बुलाकर ठहराया है. एक सप्ताह के बाद भी प्रभावित परिवार सिमेन्ट के फर्श में बिना चटार्इ दरी के लेट रहे हैं. उन्हें देखने वाला कोर्इ नहीं है. इन परिवारों की सुध क्यों नहीं ली गयी, क्योंकि हमारे आपदा प्रबन्धन महकमें के पास कार्य करने के लिए कोर्इ रूटमैप है ही नहीं.
2 comments:
हे भगवान, एक के बाद दूसरी त्रासदी।
दुखद!
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