टूटे
तार सप्तक
इकतारा
रहे शील जी
-संजय
चतुर्वेदी
जीवन
उपेक्षा से भरा था, और पूरा था
दु:खी
हुए, लेकिन कृपा को नहीं तरसे
बौने
महानंद कलाकंद कलाकार हुए
आप
वाबस्ता रहे अपनी डगर से
काव्य
में फिरंगी अदा का पाखण्ड तोड़
सादा
सच्चाई लिखी देशी नज़र से
कविकुलाभिजात्य
के कुचाली अमात्य बोले
कहाँ
शील कवि है, निकालो इसे घर से
1 comment:
रोचक
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