Friday, July 5, 2013

क्या संसार में कहीं और भी ऐसे बुद्धिजीवी रहते हैं


जानना चाहता हूँ

-संजय चतुर्वेदी

मैं छंद पर कुछ नहीं कह रहा
ऐसा करते ही कुछ लोगों को आग लग जाती है
और असुरक्षा में फंसे गिरोह को
फ़ालतू में भड़काना
फ़िलहाल मेरा मक़सद नहीं
मैं कविता कहने के
एशियाई तरीकों पर भी कुछ नहीं कह रहा
ऐसा करने पर बौद्धिक उल-जलूल का खतरा रहता है
मैं तो बस इन महान कवियों,
इन महान क्रांतिकारियों
इन दुनिया घूमे जादूगरों से
इतना जानना चाहता हूँ
क्या संसार में कहीं और भी ऐसे बुद्धिजीवी रहते हैं
जो अपने पूर्वजों की सकारात्मक उपलब्धियों पर
इतने शर्मिंदा हों?
मुंहफट होने के लिए मुझे क्षमा करें
मेरी भर्त्सना करें अगर इसमें आपको संतोष मिलता हो
अंतिम वक्तव्य तो आपका होगा ही
लेकिन जाते-जाते मुझे यह ज़ुरूर बताते जाएं
दुनिया घूमी है आपने
आप अवश्य जानते होंगे
क्या कहीं और ऐसे बुद्धिजीवी देखे हैं आपने
जो अपनी नकारात्मक उपस्थिति पर इतने गदगद
दूसरी संस्कृतियों की निंदनीय बातों पर भी इतने विभोर
और अपने पूर्वजों की सकारात्मक उपलब्धियों को लेकर भी
इतने ग्लानिग्र्स्त
इतने पशेमान हों?

('कल के लिए' के अक्टूबर २००४-मार्च २००५ अंक में प्रकाशित)

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