जब से क़ैद किया गया है
मुझे
-नाज़िम
हिकमत
जब से क़ैद किया गया है
मुझे
दस फेरे लगा चुकी धरती सूरज
के गिर्द
और अगर आप धरती से
पूछेंगे तो वो कहेगी:
“वक़्त के इतने ज़रा से टुकड़े
का
क्या ज़िक्र.”
और अगर आप मुझसे पूछेंगे
तो मैं कहूँगा:
“दस साल मेरी ज़िन्दगी
के.”
जिस साल मैं क़ैदख़ाने में
आया था
मेरे पास एक पेन्सिल थी.
वह घिस गयी हफ़्ते भर
में.
और अगर आप पेन्सिल से
पूछेंगे तो वो कहेगी:
“एक पूरी ज़िन्दगी.”
और मुझसे पूछेंगे तो मैं
कहूंगा:
“फ़क़त एक हफ़्ता बस.”
जब से क़ैदख़ाने में हूँ
मैं
हत्या के लिए क़ैद किया
गया उस्मान
सात-सालों की सज़ा बिताकर
जा चुका था.
बाहर कुछ समय आवारागर्दी
की उसने
और स्मगलिंग के अपराध
में फिर क़ैद हुआ.
उसने छः महीने की सज़ा काटी
और फिर छूट गया,
और कल एक चिठ्ठी आई है
जो कहती है कि उसकी शादी हो चुकी
और वसंत में आनेवाला है एक
शिशु.
जो बच्चे उस साल बाहर आए
थे अपनी माँओं के गर्भ से
जिस साल आया था मैं क़ैदख़ाने
में
अब दस साल के हो चुके
होंगे,
और उस साल की लम्बी पतली
डगमगाती टांगों वाली वे बछेड़ियाँ
काफ़ी पहले बदल चुकी होंगी
चौड़े पुठ्ठों वाली दब्बू घोड़ियों में.
मगर जैतून के अंकुवे अब
भी अंकुवे हैं
और बच्चे हैं अब भी.
नए चौक खुल गए हैं मेरे
सुदूर शहर में
क़ैदख़ाने में मेरे आने के
बाद से.
और एक ऐसी गली के एक ऐसे
घर में
रह रहा है मेरा परिवार
जिसे मैंने देखा तक नहीं.
उस साल कपास की मानिंद
सफ़ेद थी डबलरोटी
जब क़ैदख़ाने में आया था
मैं.
बाद में उस पर राशन लगा
दिया गया,
और यहाँ भीतर
हम मारपीट किया करते हैं
आपस में
मुठ्ठी की नाप के डबलरोटी
की एक काली पपड़ी के लिए.
अब उसे दोबारा राशन से
मुक्त कर दिया गया है
लेकिन वह भूरी और
बेस्वाद है.
जिस साल क़ैदख़ाने में आया
था मैं
शुरू ही हुआ था दूसरा
विश्वयुद्ध
दाखाऊ के शिविरों में तब
तक नहीं दहके थे तंदूर
एटम बम नहीं गिराया गया
था हिरोशिमा पर
गला काट डाले गए किसी
बच्चे के रक्त की तरह बहता रहा समय.
बाद में आधिकारिक तौर पर बंद कर कर दिया गया वह
अध्याय.
फ़िलहाल अमरीकी डॉलर तीसरे युद्ध की बात करने लगा है.
फ़िलहाल अमरीकी डॉलर तीसरे युद्ध की बात करने लगा है.
लेकिन इस सारे के बावजूद, जब से क़ैदख़ाने में आया हूँ मैं
दिन हो गए हैं ज़्यादा
उजले,
और अँधेरे की सरहद से,
वे उठ चुके हैं आधे,
फुटपाथों पर ख़ुद को
उठाते हुए.
दस फेरे लगा चुकी धरती सूरज
के गिर्द
जब से क़ैद किया गया है
मुझे
और मैं उसी जज्बे से
दोहराता हूँ अपने शब्द,
“वे उतने हैं तादाद में
जितनी चींटियाँ होती हैं
मिट्टी में,
और समुद्र में मछलियाँ
आकाश में चिडियां जितनी
होती हैं.
वे हैं डरे हुए, बहादुर,
अनभिज्ञ और बच्चे,
वे हैं जो नष्ट होते हैं
और रचते हैं,
जिनके कारनामे है गीतों
के भीतर.”
और इसके अलावा कुछ नहीं
होता
बाक़ी सारा
क़ैद में कटे मेरे दस बरस
मिसाल के तौर पर ...
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