Friday, August 30, 2013

उसके मन में चाँद चमकता बादल करते रोर - शंकर शैलेन्द्र का स्मरण


आज गीतकार शंकर शैलेन्द्र की नब्बेवीं जयंती है. उन्हें स्मरण करते हुए वीरेन डंगवाल की एक कविता और शैलेन्द्र का लिखा एक अतिप्रिय गीत –

मिष्टू का मामला
शंकर शैलेन्द्र को याद करते

-वीरेन डंगवाल

मिष्टू प्यारी बच्ची थी
लगभग चन्दनबाड़ी थी.

          उसकी थी जगमग मुस्कान
          उसके सात रंग के होंठ
          अंडर-बंडर बातें उसकी नौ रंगों की
          छः नम्बर का उसका पैर
          मेरी कक्षा में पढ़ती थी अब तो खैर
          कहीं की कहीं को गयी भी.

पढ़ने-लिखने में मंदी थी पर अक्ल की काफ़ी तेज़.

          था मिष्टू में फूलों का वास
          उसके मन में चाँद चमकता बादल करते रोर
          तड़-तड़ कभी तड़कती बिजली
कभी नाचते मोर
कभी-कभी रिमझिम बारिश की
कभी हवा उत्तप्त कठोर
हां जी हां, मैं उससे प्यार करता था.

मीता मिष्टू उखड़ा-उखड़ा अपना तो बस वही हाल है
ऊपर से जीवन के रस्ते हुए कुछ अधिक दुर्गम-बीहड़
छूटे कितने संगी-साथी डवाँडोल हो रहे हौसले
और उम्र भी ज्यों मुस्काती बाँध रही तस्मे सैंडिल के
देह-धर्म भी धीरे-धीरे बदल रहे हैं.
फिर भी बांधे गाँठ-पोटली में जिन-जिन बातों की
जिनकी लेकर टेक बढ़ा जाता हूँ मैं अब भी आगे
उन्हीं बड़ी बढ़िया बातों में प्यारी मीता
तेरे भी कितने ही, कितने ही ख़याल हैं.

3 comments:

आर. अनुराधा said...

गीत तो शानदार है ही, कविता लाजवाब।

Sunil Balani said...

Barsi ?30 august 2013 Shailendraji ka 90 janamdivas tha.......unhe yaad karte hue unke ye adhbudh geet yahan sune..
http://songsofshailendra.com/2013/08/28/compilation-30-favorite-songs/

Ashok Pande said...

ग़लती मेरी है सुनील जी. अब ठीक कर दिया है. ध्यान दिलाने का शुक्रिया.