आज गीतकार शंकर शैलेन्द्र की नब्बेवीं जयंती है. उन्हें स्मरण करते
हुए वीरेन डंगवाल की एक कविता और शैलेन्द्र का लिखा एक अतिप्रिय गीत –
मिष्टू का मामला
शंकर शैलेन्द्र को याद करते
-वीरेन डंगवाल
मिष्टू प्यारी बच्ची थी
लगभग चन्दनबाड़ी थी.
उसकी थी
जगमग मुस्कान
उसके
सात रंग के होंठ
अंडर-बंडर
बातें उसकी नौ रंगों की
छः
नम्बर का उसका पैर
मेरी
कक्षा में पढ़ती थी अब तो खैर
कहीं की
कहीं को गयी भी.
पढ़ने-लिखने में मंदी थी पर अक्ल की काफ़ी तेज़.
था मिष्टू
में फूलों का वास
उसके मन
में चाँद चमकता बादल करते रोर
तड़-तड़
कभी तड़कती बिजली
कभी नाचते मोर
कभी-कभी रिमझिम बारिश
की
कभी हवा उत्तप्त कठोर
हां जी हां, मैं उससे
प्यार करता था.
मीता मिष्टू उखड़ा-उखड़ा अपना तो बस वही हाल है
ऊपर से जीवन के रस्ते हुए कुछ अधिक दुर्गम-बीहड़
छूटे कितने संगी-साथी डवाँडोल हो रहे हौसले
और उम्र भी ज्यों मुस्काती बाँध रही तस्मे सैंडिल के
देह-धर्म भी धीरे-धीरे बदल रहे हैं.
फिर भी बांधे गाँठ-पोटली में जिन-जिन बातों की
जिनकी लेकर टेक बढ़ा जाता हूँ मैं अब भी आगे
उन्हीं बड़ी बढ़िया बातों में प्यारी मीता
तेरे भी कितने ही, कितने ही ख़याल हैं.
3 comments:
गीत तो शानदार है ही, कविता लाजवाब।
Barsi ?30 august 2013 Shailendraji ka 90 janamdivas tha.......unhe yaad karte hue unke ye adhbudh geet yahan sune..
http://songsofshailendra.com/2013/08/28/compilation-30-favorite-songs/
ग़लती मेरी है सुनील जी. अब ठीक कर दिया है. ध्यान दिलाने का शुक्रिया.
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