कोई तीन साल पहले मैंने अपनी पोस्ट ‘एक दोस्त की आत्मकथा’ में आपका परिचय जनाब त्रिलोक सिंह कुंवर से कराया था. पिछले साल नवम्बर में उन्होंने स्वेच्छा से अपना शरीर मरणोपरांत हल्द्वानी स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज को दान देने संबंधी आवेदन किया था.
तीन दिन पहले वे मेरे पास आये और कहने लगे कि उनकी अर्ज़ी का काम अब तक पूरा नहीं हुआ है – बावजूद इस के कि नवम्बर में ही इस आशय की सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली गयी थीं. जिलाधिकारी से लेकर एसएसपी तक को रजिस्टर्ड डाक भेजी जा चुकी थी. अब एक बार पुनः मेडिकल कॉलेज जाना था, थाने जाकर सत्यापन किये जाने की गुहार लगाई जानी थी.
मेरे घर में रहने वाले राजीव ने इस मामले में स्वयंसेवी की भूमिका अदा करना स्वीकार किया और अगले दिन उन्हें लेकर वह आवश्यक जगहों पर गया. परसों के स्थानीय अखबार में इस बाबत निम्न ख़बर भी छपी लेकिन सत्यापन करने कोई पुलिसवाला उनके घर नहीं पहुंचा.
अभी अभी उनसे बात करने पर पता चला है कि उन्हें फिर जाना पड़ा और अब सारी कार्रवाई तकरीबन हो चुकी है. मुझे शक है हमारे कागजतंत्र का पेट अभी पूरा शायद ही भर सका हो और कल उन्हें किसी और डिपार्टमेंट से कोई चिठ्ठी न मिल जाए कि अभी यह औपचारिकता नहीं हुई या उस जगह दस्तखत नहीं हैं.
अमर उजाला में फ़िलहाल राजीव की ही लिखी यह स्टोरी छपी थी. आगे हमारी शासन प्रणाली की महान लोकतान्त्रिकता और ईमानदारी पर आप ख़ुद फ़ैसला कीजिये –
88 का शरीर दान करने को लगा रहे दौड़
हल्द्वानी। होना तो यह चाहिए था कि प्रशासन शरीर दान करने के इच्छुक 88 वर्षीय त्रिलोक सिंह कुंवर के घर जाकर सभी प्रक्रियाएं पूरी करता। इसके बाद किसी विशेष दिवस पर इस बुजुर्ग को इस महान काम के लिए सम्मानित करत लेकिन यहां सबकुछ इसके उलट हो रहा है। श्री कुंवर आठ महीने पहले शरीर दान करने के लिए आवेदन कर चुके हैं, लेकिन अब तक प्रक्रिया में उलझे हैं। यह हालत तब है जब मेडिकल साइंस को आज सबसे अधिक किसी चीज की जरूरत है तो वह है मृत शरीर। क्योंकि एक व्यक्ति शरीर दान करता है तो चिकित्सा विज्ञान को कई नए रास्ते मिलते हैं। एक नई खोज से डॉक्टर करोड़ों लोगों की जान बचा सकते हैं।
88 साल पहले बागेश्वर में जन्मे त्रिलोक सिंह कुंवर वन विभाग के रिटायर्ड अफसर हैं और जज फार्म में रहते हैं। काया बेहद कमजोर है, लेकिन जज्बात उतने ही मजबूत। नवंबर-2012 में श्री कुंवर ने शरीर दान करने के लिए आवेदन किया था। इतने महीनों के बावजूद पुलिस से कोई सत्यापन करने नहीं आया तो मंगलवार खुद ही एसपी सिटी से मिलने कोतवाली पहुंच गए। एसपी से मिलकर बहुत खुश हुए और तुरंत बैंक एवं जलसंस्थान में बिल जमाकर घर पहुंचे ताकि कोई पुलिस कर्मी सत्यापन के लिए आए, लेकिन अंधेरा घिरते-घिरते 12 घंटे से पहले सारी खुशी काफूर हो गई। शाम को हमने फोन कर पूछा कि हो गई शरीर दान करने की प्रक्रिया पूरी तो बोले आज कोई नहीं आया कल फिर जाऊंगा। बार-बार जाऊंगा।
श्री कुंवर आज भी पूरी तरह स्वस्थ हैं। कहते हैं कि उन्होंने रिटायर होने के बाद ही तय कर लिया था कि वह शरीर दान कर मेडिकल साइंस के संकट को कम करेंगे। इसके लिए उन्होंने शरीर को स्वस्थ रखा। आज भी जिस उम्र में आदमी आसानी से बिस्तर से उठ नहीं सकता वह थोड़ी देर ही सही कसरत जरूर करते हैं। गाजर घास तोड़ने के लिए घर से बाहर जरूर निकलते हैं। कहते हैं कि उनकी बाईं आंख थोड़ी कमजोर जरूर है, लेकिन दाईं आंख का कार्निया आज भी ठीक है। उन्हें उम्मीद है कि उनके एक कार्निया से ही जरूर किसी का घर रोशन होगा। बस निराशा है तो यह है कि मंगलवार को भी कोई सत्यापन के लिए नहीं आया।
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कुंवर साहब के बारे में जानने के लिए देखें –
एक दोस्त की आत्मकथा
तीन दिन पहले वे मेरे पास आये और कहने लगे कि उनकी अर्ज़ी का काम अब तक पूरा नहीं हुआ है – बावजूद इस के कि नवम्बर में ही इस आशय की सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली गयी थीं. जिलाधिकारी से लेकर एसएसपी तक को रजिस्टर्ड डाक भेजी जा चुकी थी. अब एक बार पुनः मेडिकल कॉलेज जाना था, थाने जाकर सत्यापन किये जाने की गुहार लगाई जानी थी.
मेरे घर में रहने वाले राजीव ने इस मामले में स्वयंसेवी की भूमिका अदा करना स्वीकार किया और अगले दिन उन्हें लेकर वह आवश्यक जगहों पर गया. परसों के स्थानीय अखबार में इस बाबत निम्न ख़बर भी छपी लेकिन सत्यापन करने कोई पुलिसवाला उनके घर नहीं पहुंचा.
अभी अभी उनसे बात करने पर पता चला है कि उन्हें फिर जाना पड़ा और अब सारी कार्रवाई तकरीबन हो चुकी है. मुझे शक है हमारे कागजतंत्र का पेट अभी पूरा शायद ही भर सका हो और कल उन्हें किसी और डिपार्टमेंट से कोई चिठ्ठी न मिल जाए कि अभी यह औपचारिकता नहीं हुई या उस जगह दस्तखत नहीं हैं.
अमर उजाला में फ़िलहाल राजीव की ही लिखी यह स्टोरी छपी थी. आगे हमारी शासन प्रणाली की महान लोकतान्त्रिकता और ईमानदारी पर आप ख़ुद फ़ैसला कीजिये –
88 का शरीर दान करने को लगा रहे दौड़
हल्द्वानी। होना तो यह चाहिए था कि प्रशासन शरीर दान करने के इच्छुक 88 वर्षीय त्रिलोक सिंह कुंवर के घर जाकर सभी प्रक्रियाएं पूरी करता। इसके बाद किसी विशेष दिवस पर इस बुजुर्ग को इस महान काम के लिए सम्मानित करत लेकिन यहां सबकुछ इसके उलट हो रहा है। श्री कुंवर आठ महीने पहले शरीर दान करने के लिए आवेदन कर चुके हैं, लेकिन अब तक प्रक्रिया में उलझे हैं। यह हालत तब है जब मेडिकल साइंस को आज सबसे अधिक किसी चीज की जरूरत है तो वह है मृत शरीर। क्योंकि एक व्यक्ति शरीर दान करता है तो चिकित्सा विज्ञान को कई नए रास्ते मिलते हैं। एक नई खोज से डॉक्टर करोड़ों लोगों की जान बचा सकते हैं।
88 साल पहले बागेश्वर में जन्मे त्रिलोक सिंह कुंवर वन विभाग के रिटायर्ड अफसर हैं और जज फार्म में रहते हैं। काया बेहद कमजोर है, लेकिन जज्बात उतने ही मजबूत। नवंबर-2012 में श्री कुंवर ने शरीर दान करने के लिए आवेदन किया था। इतने महीनों के बावजूद पुलिस से कोई सत्यापन करने नहीं आया तो मंगलवार खुद ही एसपी सिटी से मिलने कोतवाली पहुंच गए। एसपी से मिलकर बहुत खुश हुए और तुरंत बैंक एवं जलसंस्थान में बिल जमाकर घर पहुंचे ताकि कोई पुलिस कर्मी सत्यापन के लिए आए, लेकिन अंधेरा घिरते-घिरते 12 घंटे से पहले सारी खुशी काफूर हो गई। शाम को हमने फोन कर पूछा कि हो गई शरीर दान करने की प्रक्रिया पूरी तो बोले आज कोई नहीं आया कल फिर जाऊंगा। बार-बार जाऊंगा।
श्री कुंवर आज भी पूरी तरह स्वस्थ हैं। कहते हैं कि उन्होंने रिटायर होने के बाद ही तय कर लिया था कि वह शरीर दान कर मेडिकल साइंस के संकट को कम करेंगे। इसके लिए उन्होंने शरीर को स्वस्थ रखा। आज भी जिस उम्र में आदमी आसानी से बिस्तर से उठ नहीं सकता वह थोड़ी देर ही सही कसरत जरूर करते हैं। गाजर घास तोड़ने के लिए घर से बाहर जरूर निकलते हैं। कहते हैं कि उनकी बाईं आंख थोड़ी कमजोर जरूर है, लेकिन दाईं आंख का कार्निया आज भी ठीक है। उन्हें उम्मीद है कि उनके एक कार्निया से ही जरूर किसी का घर रोशन होगा। बस निराशा है तो यह है कि मंगलवार को भी कोई सत्यापन के लिए नहीं आया।
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कुंवर साहब के बारे में जानने के लिए देखें –
एक दोस्त की आत्मकथा
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