ऐ गे ऋतुरैण – कुमाऊं के संगीत की ज़रा सी झलक
याद नहीं पड़ रहा साल ठीकठीक कौन सा था. पर उस साल युगमंच
नैनीताल कुमाऊँनी लोकगाथा ‘अजुवा बफौल’ का मंचन कर रहा था. निर्मल पांडे को
निर्देशन का कार्यभार सौंपा गया था और स्वर्गीय शैलेश मटियानी जी हिन्दी में
अभूतपूर्व तरीके से पुनर्रचित इस गाथा (‘मुखसरोवर के हंस’) के संगीत की व्यवस्था
सबसे बड़ी चुनौती थी.
अल्मोड़ा के नन्दादेवी मेले में पिछले साल हम दोनों लोकगायक
हरदा सूरदास को सुन चुके थे सो जब इस नाटक के संगीत की बाबत बात चली तो मैंने उसे हरदा
सूरदास को किसी तरह नाटक में ले कर आने का आग्रह किया. हरदा आए भी और क्या संगीत
उन्होंने सुनाया.
जन्म से नेत्रहीन हरदा के नाम के आगे सूरदास कब लग गया
मालूम नहीं लेकिन कुमाऊँनी लोकसंगीत की उनकी समझ और ज्ञान ज़बरदस्त था. हाथ में हुड़के
जैसा जटिल यंत्र, स्वर में उद्दाम भावुकता और मर्म में संगीत की गहरी पकड़ हरदा की
खासियत थी.
कल रात से उनका संगीत तलाश रहा हूँ, जहां तहां फ़ोन कर रहा
हूँ. आकाशवाणी अल्मोड़ा में एप्लीकेशन लगा दी है. देखिये कब आप तक पहुंचा पाता हूँ
... यह लिखते लिखते अचानक मुझे कुछ याद आया और बीट ऑफ़
इण्डिया से हरदा की डबल सीडी आर्डर कर दी है. बस इंतज़ार कीजिये.
तब तक मैं हरदा के बारे में और हालिया जानकारियाँ जुटाता
हूँ. आप सुनिए आधे मिनट का यह कमर्शियल – ऋतुरैण बाई हरदा सूरदास.
1 comment:
intzar...
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