पोलिश कवयित्री अन्ना कामीएन्स्का
की नोटबुक ‘अ नेस्ट ऑफ़ क्वायट’ से एक छोटा टुकड़ा आप पहले पढ़ चुके हैं.
आज इसी नोटबुक का आख़िरी हिस्सा
जहां अपने बीमार दादाजी की तीमारदारी के समय के अनुभवों को वे एक ठोस अध्यात्मिक आकार
दे रही हैं –
एक ठंडा दिन, लेकिन
धूपदार. नीला आसमान. शरद की हवा में सोना. मैं दादाजी के पास से लौट रही हूँ. वे
जॉब की तरह लेटे रहते हैं बीमार और अकेले. विदा लेते वक्त मेरे चेहरे पर आंसुओं की
बाढ़ आ जाती है. वे कहते हैं : “काश ईश्वर मुझ पर दया करे और मुझे अपने पास बुला
ले.”
वे जो बलूत के पेड़ जितने
मज़बूत थे और जिन्होंने कभी अपनी भावनाओं को ज़ाहिर नहीं होने दिया.
एक बूढ़े कुत्ते की आंसूभरी
काली आँखें.
***
मैं जल्दी से घर पहुँच कर
उस किताब तक पहुँचती हूँ जो मेरा इंतज़ार कर रही है. मौरियाक –
“ब्लाक-नोट्स.”
जो ईसा को प्रेम करते हैं उनके लिए वृद्धावस्था का कोई असल
अस्तित्व नहीं होता. गरिमा की स्थिति में एक व्यक्ति हर समय अपनी आत्मा की आयु के
साथ होता है.
ये शब्द मेरे लिए लिखे गए
थे, मेरा इंतज़ार करते हुए. मौरियाक ने
उन्हें १७ दिसम्बर १९६६ को लिखा था. वह इक्यासी साल का था.
***
दादाजी उस पल पर पहुँच गए
हैं जब सारे सिद्धांत उलट जाते हैं.
मैं कहती हूँ “सो जाइए.”
वे कहते हैं “अनंत आराम.”
मैं कहती हूँ “उम्मीद.”
“मौत” वे कहते हैं.
“बढ़िया मौसम है” मैं कहती
हूँ. वे कहते हैं “खालीपन. क्या होता है मौसम?”
***
डिनर के वास्ते मैं थोड़ी
मछली खरीदना चाहती हूँ. स्टोर के बाहर मील भर लंबी कतार. मैं दवा की दूकान पर जाती
हूँ. बंद है. मैं मक्खन खरीदना चाहती हूँ – स्टॉक में नहीं है.
ऐसे अनुभवों की श्रृंखला
आपको सुन्न बना देती है.
किसी बच्चे की तरह दादाजी
मुरब्बे की मांग करते हैं. ज़ाहिर है मुरब्बा भी नहीं है.
***
भोर से पहले ही मैंने सबसे
पहले उनके कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. गहरा अँधेरा था. मैंने बत्ती जलाई. सफ़ेद चादर
से ढँकी हुई आकृति के सामने मैंने बहुत देर तक प्रार्थना की. उनकी उपस्थिति से
पूरा कमरा भरा हुआ था. मेरे बहरे कानों के लिए भी यह बेहद खामोश था.
उनके जितने ऋण मुझ पर थे
मैंने उनकी कभी अनदेखी नहीं की. अपनी कांपती टांगों पर मैं उनके अंतिम संस्कार की
तैयारी करने निकल पडी.
अंत्येष्टि, २१ दिसम्बर,
शुक्रवार. और फिर शनिवार को जे. की बारहवीं पुण्यतिथि. छुट्टियाँ मनाते, सॉसेज और
मछलियों से लदी टोकरियाँ थामे लोगों की भीड़ को मैं अवाक घूरती रहती हूँ.
***
सिगरेट बॉक्स में जहाँ वे
अपने खज़ाने छिपाया करते थे, मुझे कागज़ के बस दो टुकड़े मिले: एक उनका सर्टीफ़िकेट और
दूसरा १९४६ में लेस्जीका की जेल से भेजा गया एक नोट. भूरे टेप की चिप्पी से
बमुश्किल चिपकाए गए दो पीली कागज़. इन दो कागजों में उनके भाग्य का रहस्य छिपा हुआ
है. वे ग्रामीण किस्सागो थे - विवरणों और नामों से भरपूर जिनकी जीवंत कहानियां अब
उनके साथ सो चुकीं – अपने बारे में कोई महत्वपूर्ण बात उन्होंने कभी नहीं बतलाई.
वे हमेशा दूसरों के बारे में बताया करते थे.
घर पर वे हर किसी को जानते
थे. और हरेक के जीवन की कथा सुना सकते थे.
भली और बाहरी श्रीमती के.
ने आज एक सपना देखा, यह न जानते हुए कि वे मर चुके हैं, उन्होंने उसका हाथ थामा.
उनके हाथ ठन्डे थे.
- “ऐसा कैसे कि आपके हाथ
ठन्डे हैं. ये तो हमेशा गर्म रहते थे ...” और उसके बाद वह जगी और उसे भान हुआ.
उसने उनकी आख़िरी सड़क के वास्ते एक पवित्र मोमबत्ती सम्हाल कर रखी थी.
लेकिन उसने देर कर दी थी.
हम सब को देर हो जाती है.
***
मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ
जाती है?
याकूब बोएमे ने कहा था
“उसे कहीं जाना नहीं होता.”
***
हमने दादाजी को स्कोलीमोव
के कब्रिस्तान की पवित्र पीली मिट्टी में दफन किया, जंगल के नज़दीक. वे बयानवे साल
जिए.
***
मैं आज दिन भर सारी कब्रों
को सजाने में व्यस्त रही : जे., लेक, पीएताक, एडजीया, मामा (मेरे पिता, दादी और
अंकल जेनीएक भी वहीं हैं).
दिन में जे.और दादाजी के
लिए प्रार्थना सभा.
और फिर मैं अपने को जीने
के लिए ज़बरन तैयार करती हूँ.
***
साल का आख़िरी दिन. दर्द और
आंसुओं के एक विशाल भूमिगत आईने के आर पार उम्दा मौसम पसरता जा रहा है.
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