Sunday, September 22, 2013

राहत और बचाव प्रशिक्षण हेतु गिनीज़ सम्मान की सिफारिश के बाद अब उत्तराखंड सरकार नोबेल पुरुस्कार दिए जाने की तैयारी


भूतकाल और भविष्य काल में राहत और बचाव का प्रशिक्षण

-इन्द्रेश मैखुरी

(‘समकालीन जनमत’ से साभार) 

आपदा की चर्चा के बीच आइये उत्तराखंड को लेकर अपने सामन्य ज्ञान को अपडेट करते हैं.आप समझ रहे हैं कि आपदा के बीच कुछ ख़राब किस्म का मजाक किया जा रहा? आपदा की चर्चा के बीच आखिर सामन्य ज्ञान कहाँ से आ गया? आइये देखते हैं.

क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में अधिकाँश लोगों की जन्मतिथि एक जनवरी है!

उत्तराखंड में आपदा की विभीषिका में फंसे देश भर के लोगों को निकालने के लिए सेना, वायुसेना और अर्द्धसैनिक बलों को लगाना पडा,उस दौरान तो स्थानीय प्रशासन और पुलिस नजर ही नहीं आये.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में 113 वर्ष के लोगों से लेकर ऐसे लोग भी बचाव एवं राहत का प्रशिक्षण प्राप्त हैं जो आज से 06 वर्ष बाद पैदा होंगे!

यह कोई मजाक नहीं है. उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के अधीन काम करने वाले आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र का ऐसा ही दावा है. अपनी वेबसाईट पर इस केंद्र का अपने बारे में दावा है कि यह केंद्र समुदाय और पर्यावरण को आपदा से होने वाली तबाही से बचाने वाला सबसे शीर्ष केंद्र है. यह केंद्र अपने बारे में उम्मीद जताता है कि यह राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्रालय और आपदा प्रबंधन विभाग के लिए थिंक टैंककी भूमिका अदा करे, जिसके सुझावों को आपदा से बचाव,निपटने की तैयारियों और आपदा न्यूनीकरण करने के लिए, राज्य सरकार सभी परियोजनाओं में शामिल करेगी. आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र कहता है कि नुकसान को कम करने की कोई भी रणनीति हो, लेकिन आपदा के बाद प्रतिक्रया करने से बेहतर है कि पूर्वानुमान के आधार पर कार्यवाही की जाए. इसलिए आपदा के पश्चात उपाय करने से बेहतर सक्रियता पूर्वक आपदा-पूर्व उपायों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए. समुदायों के प्रशिक्षण आदि, आदि की बात भी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र करता है.

पढने-सुनने में आपदा पूर्व सक्रिय उपाय, समूह प्रशिक्षण आदि बड़ी भली बातें मालूम होती हैं, लेकिन राज्य में आपदा की विभीषिका को कम करने और उससे निपटने का यह शीर्षकेंद्र, आपदा पूर्व कैसे सक्रिय उपाय करता है और समुदायों को प्रशिक्षित करने का कार्य किस कुशलता से अंजाम दे रहा है,इस पर भी नजर डालते हैं. इस केंद्र की वेबसाइट पर आम लोगों और सरकारी कर्मचारियों को आपदा के दौरान खोज, राहत एवं बचाव का प्रशिक्षण देने की बात कही गयी है. वेबसाईट के अनुसार पूरे उत्तराखंड के 11 जिलों में 5814 आम लोगों को यह प्रशिक्षण दिया गया है. इसमें अल्मोड़ा में 448, चम्पावत में 283, बागेश्वर में 297, देहरादून में 225, चमोली में 970, पौड़ी में 625, पिथौरागढ़ में 645, टिहरी में 575, रुद्रप्रयाग जिले में 498, नैनीताल में 524 और उत्तरकाशी में 724 लोगों को आपदा में खोज, राहत एवम बचाव का प्रशिक्षण देने का दावा आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र का है. इसके अलावा 2362 सरकारी कर्मचारियों को भी यह प्रशिक्षण देने की बात कही गयी है. हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिले के आम लोगों को प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. यह तो आपदा न्यूनीकरण एवं प्रशिक्षण केंद्र के बुद्धिमान निदेशक और अन्य विद्वत जन ही बता पायेंगे कि हरिद्वार और उधमसिंह नगर के लोगों को ऐसा प्रशिक्षण देने की जरुरत उन्होंने क्यूँ महसूस नहीं की. लेकिन दूसरा सवाल जो उठता है,वो यह कि जिन्हें प्रशिक्षण दिया गया आपदा के समय वे कहाँ थे? यदि पांच हज़ार से अधिक आम लोग खोज,राहत एवं बचाव का प्रशिक्षण प्राप्त थे तो फिर राहत और बचाव के लिए फौज और अर्द्ध सैनिक बलों का मुंह ताकने की जरुरत क्यूँ पड़ी?

दरअसल सरकारी तंत्र के कार्यप्रणाली ही आम लोगों के लिए बड़ी आपदा है. यह पूरा तंत्र अपना अधिकाँश वक्त बजट को ठिकाने लगना के प्रबंधन में जुटा रहता है. ऐसा लगता है कि आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने भी लोगों को प्रशिक्षण देने के नाम पर बजट के न्यूनीकरण और प्रबंधन पर ही अधिक जोर दिया. जिन लोगों को आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र खोज,राहत एवं बचाव का प्रशिक्षण देने का दावा करता है,उनकी सूची देखें तो सारा माजरा समझ में आने लगता है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में आपदा से निपटने में प्रशिक्षित लोगों के होते हुए भी आपदा के समय पूरा प्रशासन तंत्र किंकर्तव्यविमूढ़ और लकवाग्रस्त अवस्था में क्यूँ था !

इन ग्यारह जिलों के आपदा से निपटने का प्रशिक्षणप्राप्त लोगों की सूची पर निगाह डालें तो ऐसा लगता है कि जैसे उत्तराखंड में अधिकाँश लोग एक जनवरी को पैदा होते हों या फिर आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने प्रशिक्षण देने के लिए जो कायदा निर्धारित किया था, उसके अनुसार एक जनवरी को पैदा हुए अधिकतम लोगों को यह प्रशिक्षण देना उसका लक्ष्य था ! गनीमत है कि पैदा होने का वर्ष निर्धारित नहीं किया गया.

चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक की न्याय पंचायत मलारी में 25 लोगों को खोज, बचाव और राहत का प्रशिक्षण दिया गया और इन सब की जन्मतिथि एक जनवरी थी.

इसी तरह इसी ब्लॉक की हेलंग न्याय पंचायत के सभी प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि भी एक जनवरी थी.

चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के छिनका न्याय पंचायत में 25 लोगों ने यह प्रशिक्षण प्राप्त किया तो उसमें से 21 लोग 01 जनवरी को पैदा हुए.

इसी तरह दशोली ब्लॉक के बैरंगना न्याय पंचायत में भी 25 प्रशिक्षणप्राप्त लोगों में से 02 के अलावा बाकी 23 लोग एक जनवरी को ही पैदा हुए.

यही हाल चमोली जिले के घाट ब्लॉक का भी था. यहाँ की न्याय पंचायत सेमा में सबकी जन्मतिथि एक जनवरी है तो न्याय पंचायत फरखेत में एक को छोड़ कर सब एक जनवरी को पैदा हुए प्रशिक्षित हैं,

न्याय पंचायत उस्तोली में 25 में से 23 प्रशिक्षण पाने वाले एक जनवरी को पैदा हुए.
चमोली जिले के पोखरी ब्लॉक की न्याय पंचायत-थालाबैंड में भी सभी 24 प्रशिक्षण लेने वाले एक जनवरी को ही जन्मे थे.

पिथौरागढ़ जिले के धारचूला ब्लॉक की बरम न्याय पंचायत में 24 प्रशिक्षण पाने वालों में से 21 की जन्मतिथि एक जनवरी है.

इसी तरह धारचुला ब्लॉक की न्याय पंचायत गुंजी में भी सभी 23 प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि एक जनवरी है. इन दोनों ही न्याय पंचायतों ने 2010 की आपदा में भारी त्रासदी झेली.

पिथौरागढ़ जिले के ही मुनस्यारी ब्लॉक के नाचनी न्याय पंचायत में 25 में से 18 की जन्मतिथि एक जनवरी है तो इसी ब्लॉक की क्वीटी में सब प्रशिक्षितों की जन्मतिथि एक जनवरी है तो सेविला न्यायपंचायत में 25 में से 21 की जन्मतिथि एक जनवरी है.

इसी ब्लॉक की न्याय पंचायत सिरतोला में सभी प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि एक जनवरी है.

टिहरी जिले के प्रतापनगर ब्लॉक के सिलवालगाँव न्यायपंचायत में भी सभी प्रशिक्षण पाने वालों के जन्मतिथि एक जनवरी है.

इसी तरह भिलंगना ब्लॉक के न्याय पंचायत देवज में भी 25 के 25 प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि एक जनवरी है.

यही हाल इस ब्लॉक की कठूड में भी है,जहाँ सभी प्रशिक्षितों की जन्मतिथि एक जनवरी है.
टिहरी जिले के चंबा ब्लॉक की दिखोलगाँव में तीन लोगों को छोड़ कर सभी प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि एक जनवरी है.

चंबा ब्लॉक की पंगारखाल में 25 में से 23 की जन्मतिथि एक जनवरी दर्ज है.

इसी ब्लॉक की न्याय पंचायत नकोट में एक को छोड़ कर बाकी 24 की जन्मतिथि एक जनवरी बताई गयी है.

आपदा की मार सर्वाधिक झेलने वाले रुद्रप्रयाग जिले में भी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र का जोर एक जनवरी वालों को ही प्रशिक्षण देने पर रहा.

इस जिले के उखीमठ ब्लॉक के त्वारा न्याय पंचायत के 25 प्रशिक्षण पाने वाले सभी एक जनवरी को पैदा हुए हैं.

इसी जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक की सुमेरपुर न्याय पंचायत में भी सभी 24 प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि एक जनवरी है.

इसी ब्लॉक की पीपली न्याय पंचायत मरोड़ा में भी सभी 25 प्रशिक्षण पाने वालों की जन्मतिथि एक जनवरी बताई गयी है.

अगस्त्यमुनि की चोपता न्याय पंचायत के 25 प्रशिक्षितों में से 23 एक जनवरी को जन्मे हैं तो
चोपड़ न्याय पंचायत(वेबसाईट पर यही नाम दर्ज है) 25 में से तीन को छोड़कर सभी एक जनवरी को जन्मे हैं. 

उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक की गंगोरी न्याय पंचायत में सभी 25 प्रशिक्षण लेने वालों की उम्र एक जनवरी है.

इसी जिले के डुंडा ब्लॉक के बड़ेथी न्याय पंचायत और नौगाँव ब्लॉक की नौगाँव,नंदगाँव,गडोली व तुनाल्का न्याय पंचायत में भी सभी की जन्मतिथि एक जनवरी बताई गयी है.

इसी जिले के मोरी ब्लॉक की जखोल व दोणी न्याय पंचायतों में भी आपदा न्यूनीकरण एवम प्रबंधन केंद्र ने एक जनवरी जन्मतिथि वालों को ही प्रशिक्षण दिया.

पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक की सान्गुडा और पंचाली न्याय पंचायत में भी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र का प्रशिक्षण पाने वाले एक जनवरी को ही पैदा हुए थे.

इसी तरह देहरादून जिले के चकराता ब्लॉक की जाडी न्याय पंचायत और बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लॉक के न्याय पंचायत लोहारखेत में भी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के प्रशिक्षण की कृपा केवल एक जनवरी को पैदा होने वालों पर ही बरसी.

यह सूची अभी और लम्बी हो सकती है यदि हम उन गावों को भी जोड़ दें जहां तीन,चार,पांच छह लोगों को छोड़ कर बाकी एक जनवरी को प्रशिक्षण लेने वालों की कथा भी यहाँ लिख दी जाए.इस सूची को देख कर दो ही बातें समझ में आती है कि या तो उत्तराखंड के अधिकाँश गाँवों में कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी एक जनवरी को ही पैदा होते हैं या फिर यह सूची सिर्फ बजट को ठिकाने लगाने के प्रबंधनके उपक्रम के लिए बनायीं गई है. सहज बुद्धि से पहली संभावना कम ही नजर आती है,इसलिए साफ़ है कि यह आपदा न्यूनीकरण के नाम पर बजट न्यूनीकरणकार्यक्रम का हिस्सा था.

आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र ने आपदा से निपटने में लोगों को दक्ष बनाने के लिए कितने अथक प्रयास किये,इसकी और झलकियाँ अभी बाकी हैं. लोगों को आपदा से निपटने में उम्र जैसी तुच्छ बंदिशों का कतई ख्याल नहीं रखा गया. रखना भी क्यूँ था,आपदा से निपटने का हौसला क्या सिर्फ जवानों में हो सकता है? फौजा सिंह नब्बे साल से अधिक होने पर मैराथन दौड़ सकते हैं तो हमारे बुजुर्ग भी तो खोज,राहत और बचाव कार्य कर ही सकते हैं. इसलिए आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के प्रशिक्षण पाने वालों की सूची में राज्य भर में  1930,1943,1944,1945 और 1947 में पैदा होने वाले लोग शामिल हैं.

इस सूची के अनुसार उत्तरकाशी जिले के नौगाँव ब्लॉक के पिंडकी गाँव की श्रीमती दुलारी पंवार ने भी खोज,राहत एवं बचाव का प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिनकी जन्मतिथि 01 जनवरी 1930 है यानि उनकी उम्र 83 वर्ष है.

चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के छिनका गाँव के रणजीत लाल व लक्ष्मीप्रसाद सती की जन्मतिथि 01 जनवरी 1944 बताई गयी है.

इसी ब्लॉक के बैरंगना गाँव की प्रशिक्षण लेने वाली कमला देवी की जन्मतिथि 01 जनवरी 1943 लिखी गयी है.

चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक के मलारी गाँव के बाल सिंह,सुरेन्द्र लाल,नंदन सिंह और शंकरी देवी जिनकी जन्मतिथि 01 जनवरी 1945 दर्ज की गयी, वे भी प्रशिक्षण पाने वालों की सूची में हैं.

चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक के कनक सिंह और मुर्खुल्या सिंह ने भी यह प्रशिक्षण हासिल किया, इन दोनों की ही जन्म तिथि 01 जनवरी 1947 बताई गयी है.

इस तरह आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के दावे पर विश्वास करें तो साठ से अस्सी वर्ष के बुजुर्गों को भी आपदा से निपटने में प्रशिक्षित किया जा चुका है.

ऐसा लगता है कि यह आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र तो कोई चमत्कारिक केंद्र है क्यूंकि इसने सिर्फ अस्सी साल के बुजुर्गों को ही प्रशिक्षण नहीं दिया बल्कि 113 वर्ष की उम्र पार कर चुके लोगों को भी प्रशिक्षित कर दिया है.

आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की वेबसाईट के अनुसार चमोली जिले के कर्णप्रयाग ब्लॉक की कर्णप्रयाग न्याय पंचायत के प्रशिक्षण पाने वाले सभी 22 लोगों की जन्मतिथि 01 जनवरी 1900 लिखी गयी है.

यह सिर्फ इतना चमत्कार नहीं है कि 113 वर्ष के लोगों ने आपदा से निपटने का प्रशिक्षण प्राप्त किया. यह तो इसलिए चमत्कार है कि एक न्याय पंचायत में 113 वर्ष की उम्र के बीस से अधिक लोग हैं. आपदा न्यूनीकरण और प्रबन्धन केंद्र की इस सूची से तो उत्तराखंड काम नाम तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करवाया जा सकता है !


इतना भी जैसे कुछ कम था.आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र ने तो ऐसे व्यक्ति को भी प्रशिक्षण देने का दावा अपनी वेबसाईट पर किया जो जन्मतिथि के हिसाब से तो अभी पैदा ही नहीं हुआ है.

इनकी वेबसाईट के अनुसार उत्तरकाशी जिले के नौगाँव ब्लॉक के किम्मी गाँव के बबलू सिंह पुत्र जोत सिंह ने भी प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिनकी उम्र 01जनवरी 2019 दर्ज की गयी है. जो साल अभी आया ही नहीं,उस साल में पैदा हुए व्यक्ति को प्रशिक्षण देने का कारनामा सरकारी महकमे ही कर सकते हैं.


जब कागजों का पेट भरने के लिए 113 वर्ष से लेकर भविष्य काल की जन्मतिथि वालों का नाम प्रशिक्षितों की सूची में दर्ज कर लिया जाएगा तो आपदा के समय ऐसे प्रबंधन का लापता होना कोई आश्चर्य नहीं है. आपदा का प्रबंधन और न्यूनीकरण थोड़ा मुश्किल काम है. लेकिन बजट का कुशलता पूर्वक प्रबन्धन, न्यूनीकरण और हजमीकरण तो हो ही सकता है. यह भी वैसे काफी मुश्किल काम है. बजट का प्रस्ताव बनाओ,इतने लोगों के नाम सोचो, फिर उनकी जन्मतिथि की कल्पना करो, फिर उनके नाम पर बजट खपाओ. बहुत मेहनत लगती है इस काम में. अगर आपदा प्रबंधन के नाम पर मिले बजट के हजमीकरण का कुशल प्रबंधनन किया जाए तो बजट के न खपे पैसे की ही बाढ़ आ जायेगी. इसलिए बजट के पैसे खपाने का प्रबंधन और उसका न्यूनीकरण ही सरकारी कारकुनों का एकमात्र प्राथमिक और महत्वपूर्ण लक्ष्य है. यह आपदा न्यूनीकरण नहीं,बजट लूटी कार्यक्रम है.

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