Saturday, September 7, 2013

प्‍यारे तेरी बात प्‍यारी लगे

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में जन्मे वली मुहम्मद वली यानी ‘वली’ दकनी (१६६७-१७०७) उर्दू ज़ुबान में ग़ज़लगोई करने वाले पहले बड़े शायर माने जाते हैं. घुमक्कड़ी को ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत मानने वाले वाली के बारे में यह बात मशहूर है कि जब वे अपना दीवान लेकर १७०० में दिल्ली आए तो उत्तर भारत के काव्य संसार में भारी सनसनी फैल गयी थी. उनके दिल्ली आगमन के कुछ ही सालों में मीर, ज़ौक़, और सौदा जैसे दिग्गज शायर उत्तर भारत की शान बन गए थे.

१७०७ में  हुई उनकी मौत के बाद वली दकनी को  अहमदाबाद के एक कब्रिस्तान में दफ़न किया गया. 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान उनकी मज़ार तक को नहीं बख्शा गया. उन्मादियों की एक भीड़ ने उसे नेस्तनाबूद करते हुए हमारी साझा संस्कृति पर एक और दाग़ लगाया.  

वली’ दकनी की ग़ज़लों की सीरीज शुरू करता हूँ आज से –

जिसे इश्‍क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िदगी क्‍यूँ न भारी लगे

न छोड़े मुहब्‍बत दम-ए-मर्ग लग
जिसे यार जानी सूँ यारी लगे

न होवे उसे जग में हरगिज़ क़रार
जिसे इश्‍क़ की बेक़रारी लगे

हरेक वक़्त मुझ आशिक़-ए-पाक कूँ
प्‍यारे तेरी बात प्‍यारी लगे

'वली' कूँ कहे तू अगर एक वचन

रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे

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