Saturday, November 9, 2013

ज़ाहिर है नर्सें उन पर मुग्ध हुईं


अन्ना कामीएन्स्का की डायरी से पुनः -

मेरे दादाजी स्तानिस्लाव शिपिलो का नब्बेवां जन्मदिन. वे अब भी युवा हैं, असाधारण. बड़ी बड़ी सफ़ेद मूंछें. वे अब भी अपना सैनिक व्यवहार बनाए हुए हैं और बालसुलभ शरारतें करते रहते हैं. हाल ही में वे नालेक्जोवा के सैनेटोरियम से वापस लौटे हैं. ज़ाहिर है नर्सें उन पर मुग्ध हुईं. वहाँ पहुँचने से पहले उन्होंने पता लगा लिया था कि टेबल पर उनकी बगल में कौन बैठने वाला है, और उन्होंने अपने आसपास बैठे हुओं को बताया कि दूसरा वाला बहरा है. सो हर किसी ने बैठते ही चिल्लाना शुरू कर दिया. दादाजी बहुत खुश हुए. दीवारों पर लिखे इन शब्दों ने उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा दी थी: “शान्ति उपचार करती है.”