Saturday, November 9, 2013

तुम उसे ढंकते हो स्वर्ग जैसे एक कम्बल से


चंद्रमा था मैं

-येहूदा आमीखाई

बहुत उदास है मेरा बच्चा.

जो भी उसे पढ़ाता हूँ मैं
प्रेम का भूगोल
दूरी की वजह से
न सुनी जा सकने वाली अजनबी आवाज़ें –
रात अपना नन्हा पलंग मेरी तरफ झुलाता है मेरा बच्चा
मैं कौन हूँ?
विस्मृति से अधिक.
भुला दी जाती है ख़ुद भाषा ही.
और जब तक वह समझेगा कि मैंने क्या किया
मैं हो चुका होऊंगा मृतकों जैसा.

क्या कर रहे हो तुम हमारे शांत बच्चे के साथ?
तुम उसे ढंकते हो स्वर्ग जैसे
एक कम्बल से, बादलों की परतों से –
मैं चन्द्रमा हो सकता था.

क्या कर रहे हो अपनी उदास उँगलियों से?
तुम उन्हें पहनाते हो दस्ताने
और बाहर चले जाते हो.


चंद्रमा था मैं.

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