Sunday, November 3, 2013

मुझे हैरत होती है कि लोगों को मेरी ‘बुलडोज़र’ आवाज़ कैसे पसंद आ जाती है - रेशमा आपा का इंटरव्यू


साल २००४ की फरवरी में जब रेशमा आपा भारत आई थीं तो अविनाश कल्ला के ‘द साउथ एशियन डॉट कॉम’ के लिए एक इंटरव्यू दिया था. उसी को प्रस्तुत कर रहा हूँ आपके वास्ते –

“आशिकां दी गली ...”  हॉल के भीतर मीठी आवाज़ गूँज रही है. अचानक ख़ामोशी सी छा जाती है. विश्वविख्यात लोक गायिका रेशमा के लिए यह बॉलीवुड से काफ़ी ‘लम्बी जुदाई’ रही है – कोई बीस साल की. और अब इतने सालों बाद उनके चाहनेवाले खुली बांहों से उनका इस्तकबाल कर रहे हैं. उनकी लोकप्रियता और उनके प्रति सम्मान का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस हॉल में प्रवेश किया, सबसे सनकी और खडूस तक समझे जाने वाले वरिष्ठतम पत्रकार भी अपनी सीट छोड़कर खड़े हो गये. दशकों बाद की गायकी के बावजूद उनकी आवाज़ वैसी ही जगमग बनी हुई है – उतनी ही जादुई, वैसे ही मोहाविष्ट कर लेने वाली -

अविनाश कल्ला – पत्रकारों ने खड़े होकर आपको इज्ज़त बख्शी. कैसा लग रहा है आपको?

रेशमा – तालियों की आवाज़ सिर्फ़ यही नहीं दिखाती कि यहाँ लोग मुझे प्यार करते हैं बल्कि इस बात कभी अहसास कराती है कि हम दो देशों के बीच कितने गहरे सांस्कृतिक बंधन हैं. ऐसी दाद पाना किसी भी आर्टिस्ट के लिए सम्मान की बात है. मैं अपने सारे शुभचिंतकों की ऋणी हूँ जिनके लगातार आशीर्वाद से मैं गाती रही हूँ और जो उसे पसंद करते आये हैं

अविनाश कल्ला – सुभाष घई की फ़िल्म ‘हीरो’ में लम्बी जुदाई गाने के बाद से बीस आल बीत गये हैं. क्या आपको लगता है हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में बदलाव आये हैं?

रेशमा – कई दफ़ा बदलाव तरक्की की निशानी होता है. हाँ, बहुत कुछ बदला है और बहुत कुछ नहीं बदला है. किसी ने मुझे एक दिन बताया था कि मेरी आवाज़ नहीं बदली है. इसके लिए मैं अल्लाह की शुक्रगुजार हूँ. (हँसते हुए) लेकिन मुझे अपनी आवाज़ भारी और खरखरी लगती है. कभी कभी मुझे हैरत होती है कि लोगों को मेरी ‘बुलडोज़र’ आवाज़ कैसे पसंद आ जाती है.

अविनाश कल्ला – आप महीने भर से भारत भ्रमण पर हैं. और क्या क्या कर रही हैं आप?

रेशमा – मुझे गज सिह ने जोधपुर में अपने खूबसूरत महल में गाने का न्यौता दिया था. ऐसा शायद पहली बार हुआ था कि लोगों के खड़े होने तक की जगह न थी. अब मैं अपनी पैतृक स्थान बीकानेर जाने का इंतज़ार कर रही हूँ. वहां भी मुझे गाना है. मैं कोशिश करूंगी अजमेर शरीफ़ जाने का मौक़ा निकाल सकूं.

अविनाश कल्ला – भारत में आपको लोग इतना प्यार और सम्मान देते हैं. कैसा लगता है?

रेशमा – दोनों देश मेरे दो जहां हैं. एक में मैं पैदा हुई थी, दूसरे में मैं रहती हूँ. सरहद के आरपार के लोगों में कोई अंतर नहीं है. हमारी परम्पराएं, संस्कृति और अभिव्यक्तियाँ एक हैं. भारत में रहने वाले लोग मेरे ही भाई-बहन हैं और उनसे मुझे वैसी ही मोहब्बत मिलती रही है.

अविनाश कल्ला – बीस साल बाद आपने बॉलीवुड में गाने का फ़ैसला कैसे ले लिया ?

रेशमा – मुझे जब जब गाने का मौक़ा मिला है, मैंने गाया है. ‘तेरा नाम था’ फ़िल्म के डायरेक्टर कुकू कोहली मुझसे मिलने लन्दन पहुंचे जहां मेरी एक कन्सर्ट थी. उन्होंने मुझसे पूछा क्या मैं उनकी फ़िल्म के लिए गाऊँगी. मैंने कहा – “आप मुझे गाने का न्यौता देने इतनी दूर से आए हैं, मैं मना कैसे कर सकती हूँ.

अविनाश कल्ला – गाने की रेकॉर्डिंग दुबई में क्यों हुई?

रेशमा – उन दिनों दोनों मुल्कों के बीच कुछ तल्खी चल रही थी. तब ऐसा करना पड़ा.

अविनाश कल्ला – क्या आप और फिल्मों के लिए गाएंगी?

रेशमा – बेशक. मैं चाहती हूँ कि यहाँ आती रहूँ. फिल्मों में गाऊँ, स्टेज शो दूं. मुझे यहाँ हमेशा आनंद आया है.

अविनाश कल्ला – अपनी पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताइये ... ख़ास तौर पर संगीत की अपनी जड़ों के बारे में.

रेशमा – "मेरा जन्म बीकानेर, राजस्थान के एक बंजारा परिवार में हुआ था. जब मैं छोटी ही थी, हमारा परिवार पाकिस्तान चला गया. मुझे संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली. लिखना-पढ़ना मुझे अब भी नहीं आता. चाहे लोकगीत हो, ग़ज़ल हो या फ़िल्मी गाना, मैं उसे अपने दिल से गाती हूं. लेकिन संगीतकारों को मेरे साथ बहुत मशक्कत करनी पड़ती है - मेरे अनपढ़ होने की वजह से मुझे बोल रटाने में उन बिचारों का बहुत समय लगता है.

अविनाश कल्ला – चूंकि आपने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली, आपने अपनी वॉईस ट्रेनिंग में बहुत मशक्कत की होगी?

रेशमा – नहीं नहीं मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. और रियाज़ वगैरह भी बहुत कम. हर सुबह की नमाज़ ही मेरा रियाज़ होती है. अल्लाह ने मुझे यह आवाज़ देकर मेहरबानी की है.

अविनाश कल्ला – आप कब से गा रही हैं?

रेशमा – जब से बोलना शुरू किया तभी से. लेकिन १९६५ में, जब मैं सत्रह साल की थी, मैंने अपना पहला स्टेज शो दिया था.

अविनाश कल्ला – ‘लम्बी जुदाई’ के इस कदर हिट होने के बाद भी आपने और गाने नहीं गाये?

रेशमा – जैसा मैंने कहा मुझे जहां जहां बुलाया गया मैंने गाया. मैंने संजय खान की ‘सरज़मीं’ और ‘हीर रांझा’ के लिए भी गाया है.

अविनाश कल्ला – क्या यह सच है कि कुछ समय पहले आपके गले में कुछ दिक्कत आ गयी थी जिसके कारण आपने गाना छोड़ लेने तक का मन बना लिया था?

रेशमा – हां, कुछ समय पहले मेरे गले में गम्भीर इन्फेक्शन हुआ था जिसकी वजह से मैं लम्बे समय तक नहीं गा सकी. एक सर्जरी के बाद मेरी आवाज़  लौट आई. आप का प्यार और दुआओं ने मुझे ये नई ज़िन्दगी दे दी और मैं गाने के लिए हाज़िर हूँ.

अविनाश कल्ला – आपको अपना गाया कौन सा गीत सबसे अच्छा लगता है?

रेशमा – यह किसी माँ से पूछने जैसा है कि उसका सबसे पसंदीदा बच्चा कौन सा है. मुझे उन सबसे प्यार है. लेकिन अगर आप एक ख़ास वाले की बात करेंगे तो मुझे ‘शाहबाज़ कलंदर’ क़व्वाली ख़ासी पसंद आती है.

अविनाश कल्ला – भारत में आपके पसंदीदा संगीतकार और गायक?

रेशमा – मेरे भीतर नौशाद साहब के लिए बहुत इज्ज़त है और मैं उन्हें अपना गुरु मानती हूँ. मैं मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की भी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ. लता का ‘रसिक बलमा’ मेरा सबसे प्रिय गीत है. 


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